मायावती का बबुआ, बबुआ रह गया, मोदी मैनेजमेंट जीत गया
उत्तरप्रदेश के रिजल्ट का जिस प्रकार से एग्जिट पोल आया, वो सही साबित हुआ। भारतीय राजनीति के घमासान का केंद्र बन गया था उत्तरप्रदेश। राज्य सरकार के सामने राष्ट्रीय सरकार आकर खड़ी हो गई थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अच्छी इमेज व लहर के बावजूद शतरंज की बिसात पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैनेजमेंट जीत गया। यहां उत्तरप्रदेश का पूरा चुनाव मोदी की नोटबंदी व उनकी इज्जत का प्रश्न बन गया और संपूर्ण भाजपा ने अपनी ताकत झोंक दी थी। जिस प्रकार इन तमाम बातों ने मोदी का विराट स्वरूप दिखाया उसके आगे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जोकि मायावती के बबुआ थे, सही में बबुआ साबित हुए।
समाजवादी पार्टी के चाणक्य व अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव का अखिलेश से तनातनी होकर अलग होना भी एक बड़ा कारण बन गया। निश्चित तौर पर युवा मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश ने एक अच्छी छवि बनाई थी। अपने काम, अच्छे लोगों को आगे लाना, गलत छवि वालों को दरकिनार करना, यह सब अच्छाई के लक्षण थे। यह सब कर के आम जनता व कार्यकर्ता में तो उन्होंने अपनी छवि उज्जवल कर ली, किन्तु वह यह सब भूल गए थे, राजनीति में सिर्फ और सिर्फ अच्छी छवि से काम नहीं होता, उसके लिए व चुनावी दंगल में दांव-पेंच का भी बड़ा महत्व होता है, चुनावी मैनेजमेंट भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। यहीं वह हार गए, मैनेजमेंट जीत गया। प्रधानमंत्री यह सब करके प्रचंड बहुमत से विजयी हो गए।
जहां तक कांग्रेस के साथ गठबंधन का सवाल था, प्रथम दृष्टि में अच्छा था किंतु राजनीतिक बिसात पर कांग्रेस की राहुल गांधी के नेतृत्व में डूबती नाव में सवार होना अखिलेश के लिए आत्मघाती साबित हुआ। ऐसा करके अखिलेश ने पिता को भी खोया, जनाधार भी खोया। जहां तक प्रश्न आम जनता का है वह मूर्ख नहीं है किंतु वह भी शतरंज के इन खिलाड़ियों के खेल में महज मोहरा बन कर रह जाती है क्योंकि सरकार किसी की भी सत्ता में आए नुकसान में जनता रहती है और उनके चुने हुए जनप्रतिनिधी उन्हीं पर राज करते रहते हैं।
’मोदी युग’ में प्रवेश के लिए तैयार हो जाएं
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