Tuesday, August 22nd, 2017
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आखिर खत्म होगा NPA का सिरदर्द, बैंको के आएगें अच्छे दिन




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बैंकिंग नियमन (सेंशोधन) अध्यादेश से ताकत मिलने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक मार्च, 2019 तक करीब 8 लाख करोड़ रूपये के डूबे कर्ज नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) को निपटाने के लिए सख्त कदम उठा सकता है। उद्योग मंडल एसोचैम की एक स्टडी में कहा गया है कि इससे बैंको की वित्तीय सेहत में सुधारने में मदद मिलेगी और बैंको का एनपीए कम होगा।

एसोचैम की स्टडी ‘एनपीए रिजॉल्यूशन : लाइट एट द एंड ऑफ टनल बाय मार्च 2019′ में कहा गया है कि यह मानना अधिक सुरक्षित होगा कि नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स की समस्या वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही तक काफी हद तक निपट जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि समूचे एनपीए को दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता कार्रवाई के तहत लाया जा सकता है पर देखने वाली बात यह है कि यह कितना और कितनी तेजी से यह बदलाव बैंक की बैलेंस शीट से हटेगा। आज की तारीख में बैंको पर एनपीए का काफी दबाव है। जिसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता हैं।

आज विशेषकर एनपीए से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय सेहत खराब हो रही है। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2016-17 में 27 बैंको का सामूहिक परिचालन लाभ (ओपरेटिंग प्रोफिट) 1.5 लाख करोड़ रूपये रहा, लेकिन इसमें डूबे कर्ज के लिए प्रावधान को लेने के बाद उनका शुद्ध मुनाफा घटकर मात्रा 574 करोड़ रूपये पर आ गया है।

आखिर क्या है नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए)?
एनपीए बैंक के बारे में बात करें तो यह लॉन के बारे में होता है और भी बड़े लॉन के बारे में क्योंकि छोटे लॉन अगर लेते है तो बैंक वसूली के लिए खून-पसीने एक कर देती है, लेकिन बड़े लॉन के मामले में ऐसा नहीं होता है और इसके बहुत से कारण और दबाव होते है जिसकी वजह से बैंक ऐसा कर पाने में अक्षम होते है।

अगर बैंक से कोई बड़ा लॉन लेता है और किसी भी कारण से उसे वसूल पाने में सक्षम नहीं होता है तो यह एनपीए की श्रेणी में आ जाता है, इसे बेड लॉन भी कहते है। इसलिए ऐसे लॉन जिनके डिफॉल्ट होने की संभावना अधिक होती है। वह एनपीए में आते है।

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