प्रसून जोशी : फैंसी ड्रेस कवि से लेकर मशहूर गीतकार बनने तक का सफ़र
गीतकारों की फेहरिस्त में प्रसून जोशी का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। एक ओर जहां बॉलीवुड के नए गाने दिन-ब-दिन अपना मतलब खोते जा रहे हैं वहीं प्रसून के लिखे गानों में एक जादू है। उनकी लिखावट काग़ज के किसी टुकड़े पर नहीं लोगों के दिलों में छपती है। प्रसून का आज जन्मदिन है। आज उन्होंने अपने जीवन के 45 साल पूरे कर लिए हैं। इस ख़ास मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं प्रसून से जुड़ी कुछ ख़ास बातें…
16 सितंबर 1971 को उत्तराखंड में जन्मे प्रसून जोशी को बचपन से ही साहित्य से लगाव था। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने बचपन की यादों को साझा करते हुए बताया था, ’’मुझे याद है कि बचपन में जब मैं स्कूल में था तो मैं फ़ैंसी ड्रेस शो में कवि बना था। आज इस तरह के आयोजन में कोई कवि बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता, लेकिन हमारे ज़माने में लोग कवि भी बनते थे। बचपन के उस फैंसी ड्रेस शो में मैं जयशंकर प्रसाद बना था और उनकी ‘आँसू’ कविता की पंक्तियों का पाठ किया था।’’
उन्होंने 17 साल की उम्र में अपनी पहली किताब ’मैं और वो’ लिखी थी। लिखने की कला तो उनके पास थी ही लेकिन एमबीए करने के दौरान उन्होंने तय किया कि वे अपना करियर एडवरटाइजिंग में बनाएंगे। अपने एडवरटाइजिंग करियर के दौरान उन्होंने कई एड लिखे। एनडीटीवी की ’सच दिखाते हैं हम’ और कोकाकोला की ’ठंडा मतलब कोकाकोला’ जैसी पंचलाइन भी उन्होंने ही लिखी थी। एड की दुनिया में अपने इसी योगदान के चलते उन्हें ’एड गुरु’ भी कहा जाता है।
दिल्ली में ’ओ एंड एम’ कंपनी में काम करते वक़्त प्रसून की मुलाकात अपर्णा से हुई। अर्पणा भी उसी कंपनी में काम करती थीं। कई मुलाक़ातों के बाद दोनों ने शादी कर ली। दोनों की एक बेटी है जिसका नाम ऐशन्या है। प्रसून अपनी निजी ज़िंदगी को निजी रखना ही पसंद करते हैं। इसी के चलते न तो उनकी शादी की ख़बर मीडिया में आई थी और न ही उनकी बेटी के जन्म की।
लगभग 10 साल तक एडवरटाइज़िंग में काम करने के बाद गीतकार के तौर पर उन्होंने राजकुमार संतोषी की ’लज्जा’ से फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू किया था। इसके बाद उन्होंने ’फना’, ’रंग दे बसंती’, ’तारे जमीं पर’, ’ब्लैक’, ’हम-तुम’ और ’दिल्ली-6’ जैसी फिल्मों के गाने लिखे। ’रंग दे बसंती’ के तो डायलॉग भी उन्होंने ही लिखे थे। ’रंग दे बसंती’ फिल्म के तो डायलॉग भी उन्होंने ही लिखे थे।
हाल ही में प्रसून ने रियो ओलंपिक में पीवी सिंधु, साक्षी मलिक और दीपा करमाकर के शानदार प्रदर्शन को देखते हुए देश की बेटियों को समर्पित ये कविता लिखी थी जो इंटरनेट पर ख़ूब वायरल हुई थी।
शर्म आ रही है ना, उस समाज को जिसने उसके जन्म पर खुल के जश्न नहीं मनाया
शर्म आ रही है ना, उस पिता को उसके होने पर जिसने एक दीया कम जलाया
शर्म आ रही है ना, उन रस्मों को उन रिवाजों को उन बेड़ियों को उन दरवाज़ों को
शर्म आ रही है ना, उन बुज़ुर्गों को जिन्होंने उसके अस्तित्व को सिर्फ़ अंधेरों से जोड़ा
शर्म आ रही है ना, उन दुपट्टों को उन लिबासों को जिन्होंने उसे अंदर से तोड़ा
शर्म आ रही है ना, स्कूलों को दफ़्तरों को रास्तों को मंज़िलों को
शर्म आ रही है ना, उन शब्दों को उन गीतों को जिन्होंने उसे कभी शरीर से ज़्यादा नहीं समझा
शर्म आ रही ना, राजनीति को धर्म को जहां बार-बार अपमानित हुए उसके स्वप्न
शर्म आ रही है ना, ख़बरों को मिसालों को दीवारों को भालों को
शर्म आनी चाहिए, हर ऐसे विचार को जिसने पंख काटे थे उसके
शर्म आनी चाहिए, ऐसे हर ख्याल को जिसने उसे रोका था, आसमान की तरफ देखने से
शर्म आनी चाहिए, शायद हम सबको…
क्योंकि जब मुट्ठी में सूरज लिए नन्ही सी बिटिया सामने खड़ी थी, तब हम उसकी उंगलियों से छलकती रोशनी नहीं, उसका लड़की होना देख रहे थे
उसकी मुट्ठी में था आने वाला कल. और सब देख रहे थे मटमैला आज.
पर सूरज को तो धूप खिलाना था, बेटी को तो सवेरा लाना था…
…और सुबह हो कर रही.
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