पायलट से बने थे पीएम, सत्ता के गलियारों में किया था संघर्ष
भारतीय राजनीति के इतिहास के सबसे युवा और चर्चित प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कल जन्मदिन है। वे राजनीति में काफी चर्चित रहे और विवादित भी रहे। राजनीति का युवा चेहरा कहे जाने वाले राजीव गांधी बोफोर्स घोटाले को लेकर काफी विवादों मे रहे। 20 अगस्त को उनके जन्मदिन पर हम आपको बताने जा रहे है उनके ही बारे में कुछ खास बातें…
राजीव गांधी का जन्म बम्बई में हुआ था। जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब वे सिर्फ 8 साल के थे। 40 साल की उम्र में उन्होने राजनीति में कदम रखा और बहुमत के साथ भारत के प्रधानमंत्री बने। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आम चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी जीत मिली थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे।
ऐसा बीता बचपन
राजीव गांधी ने अपना बचपन अपने दादा के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया जहाँ इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में कार्य किया। वे कुछ समय के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया। वहां उनके कई मित्र बने जिनके साथ उनकी आजीवन दोस्ती बनी रही। बाद में उनके छोटे भाई संजय गाँधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया जहाँ दोनों साथ रहे।
राजनीति में नहीं थी रूचि
स्कूल से निकलने के बाद राजीव कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए लेकिन जल्द ही वे वहां से हटकर लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज आ गए। उन्होंने वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। यह तो स्पष्ट था कि राजनीति में अपना करियर बनाने में उनकी कोई रूचि नहीं थी। उनके सहपाठियों के अनुसार उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें न होकर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की पुस्तकें हुआ करती थीं। संगीत में उनकी बहुत रुचि थी। उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय एवं आधुनिक संगीत पसंद था। उन्हें फोटोग्राफी एवं रेडियो सुनने का भी शौक था।
इंडियन एयरलाइन में बने पायलट
राजीव गांधी को हवाई उड़ान का जुनून था। इसी को पूरा करने के लिए उन्होनें इंग्लैंड से घर लौटने के बाद दिल्ली फ्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की एवं कमर्शियल पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया। जल्द ही वे घरेलू राष्ट्रीय जहाज कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए।
कैम्ब्रिज में हुई सोनिया मैनो से मुलाकात
कैम्ब्रिज में उनकी मुलाकात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी जो उस समय वहां अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली। वे अपने दोनों बच्चों, राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में श्रीमती इंदिरा गांधी के निवास पर रहे। आस-पास राजनीतिक गतिविधियों की ऐसी हलचल के बावजूद वे अपना निजी जीवन जीते रहे।
भाई की मौत ने बदला जीवन
राजीव गांधी का जीवन वैसे तो राजनीति के आस-पास ही गुजरा पर उन्हे राजनीति में कोई खास रूचि नहीं थी। लेकिन 1980 में उनके भाई संजय गांधी की विमान दुर्घटना में हुई मौत ने सारी परिस्थितियां बदल कर रख दीं। उनपर राजनीति में प्रवेश करने एवं अपनी माँ को राजनीतिक कार्यों में सहयोग करने का दवाब बन गया। फिर कई आंतरिक एवं बाह्य चुनौतियाँ भी सामने आईं। पहले उन्होंने इन दबावों का विरोध किया लेकिन बाद में वे उनके द्वारा दिए गए तर्क से सहमत हो गए। उन्होंने अपने भाई की मृत्यु के कारण खाली हुए उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव जीता।
माँ की हत्या के बाद बने पीएम
शायद ही सत्ता में किसी का जीवन इतना कष्टपूर्ण रहा हो, जितना राजीव गांधी का रहा। पहले उन्होने अपना भाई खोया और इसके बाद उनकी माँ की भी क्रूरता से हत्या कर दी गई। माँ इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वे देश के पीएम बने।
हार के बाद बदली कांग्रेस
1989 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। पार्टी की इतनी बड़ी हार के बाद राजीव गांधी ने कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा करना शुरू किया। अपनी ही पार्टी में आलोचना का शिकार हो रहे राजीव ने नई रणनीति बनाई। वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहते थे। 1991 के आमचुनाव में वह जनता के करीब पहुंचने की रणनीति पर चल रहे थे। इस दौरान अपनी सुरक्षा व्यवस्था की अनदेखी ही उनका काल बन गई। तमाम चेतावनियों के बाद भी उन्होंने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर रहने दिया।
लिट्टे ने लिखी मौत की किताब
1991 में श्रीलंका में शांति सेना भेजने से पहले लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन दिल्ली में राजीव गांधी से मिलने आया था। इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि तभी से लिट्टे ने राजीव गांधी की हत्या का प्लान बनाना शुरू कर दिया। उसे इंतजार था तो मौके का। प्रभाकर, राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान जब दिल्ली आया तब राजीव उससे सख्ती से पेश आए। प्रभाकरन ने तमिल हित की ख़ातिर राजीव की बात मानने से इनकार कर दिया। राजीव गांधी ने उसे अपनी शर्तें मनवाने तक पांच सितारा होटल में नज़ररबंद करा दिया था। उन्होंने उसे तभी श्रीलंका जाने की इजाजत दी जब उसने शर्तें मान लेने का आश्वासन दिया। कहा जाता है कि शर्तें मानने के लिए प्रभाकरन का हामी भरना अपने को मुक्त करा कर श्रीलंका पहुंचने की एक चाल भर थी। इस घटना के बाद वह राजीव का पक्का दुश्मन बन गया था।
जाफना के जंगलों में बिछाया मौत का जाल
राजीव गांधी की मौत का पूरा प्लान नवंबर 1990 में श्रीलंका के जाफना के जंगलों में लिट्टे के एक अति गोपनीय ठिकाने पर बनाया गया। प्रभाकरन, बेबी सुब्रह्मण्यम, मुथुराजा, मुरूगन और शिवरासन इसके मास्टरमाइंड बने। इन्होने यहां पर मीटिंग की और अलग-अलग तरह से राजीव गांधी की मौत का प्लान बनाया। जिसमें से एक प्लान पर प्रभाकरन ने अपनी सहमति जता दी। इसके बाद बेबी और मुथुराजा 1991 की शुरुआत में चेन्नई आ गए।
बहन को बनाया मानव बम
शिवरासन के पोरूर पहुंचते ही जाफना के जंगलों की साजिश का जाल पूरा हो गया। शिवरासन ने कमान अपने हाथ में ले ली। बेबी औऱ मुथुराज श्रीलंका वापस चले गए। चेन्नई में मानव बम की खोज शुरू की गई जब उन्हे मानवबम खोजने में नाकामी हाथ लगी तो प्रभाकरन ने शिवरासन की चचेरी बहनों धनु और शुभा को मानवबम बनाने के लिए राजी किया।
शिवरासन ने टारगेट का खुलासा किए बिना बम एक्सपर्ट अरिवू से एक ऐसा बम बनाने को कहा जो महिला की कमर में बांधा जा सके।
शिवरासन के कहने पर अरिवू ने एक ऐसी बेल्ट डिजाइन की जिसमें छह आरडीएक्स भरे ग्रेनेड जमाए जा सके। हर ग्रेनेड में अस्सी ग्राम सीफोर आडीएक्स भरा गया। सारे ग्रेनेड को सिल्वर तार की मदद से जोड़ा गया। बम को चार्ज देने के लिए 9 एमएम की बैटरी लगाई गई. ग्रेनेड में जमा किए गए स्प्रिंटर कम से कम विस्फोटक में 5000 मीटर प्रतिसेकेंड की रफ्तार से बाहर निकलते यानी हर स्प्रिंटर एक गोली बन गया था। बम इस तरह से डिजाइन किया गया था कि आरडीएक्स चाहे जितना कम हो अगर धमाका हो तो टारगेट बच न सके और वही हुआ भी।सबसे बड़ी बात जो इस बम में थी कि उसको मेटल डिटेक्टर से भी नहीं पकड़ा जा सकता था।टारगेट अब बेहद आसान हो गया था।
रैली में दिया राजीव गांधी की मौत को अंजाम
12 मई 1991 को शिवरासन और धनू ने पूर्व पीएम वीपी सिंह और डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि की रैली में फाइनल रेकी की। तिरुवल्लूर के अरकोनम में हुई इस रैली में धनू, वीपी सिंह के पास तक पहुंची उसने उनके पैर भी छुए। इससे शिवरासन के हौसले बुलंद हो गए और उसे अपना प्लान कामयाब होता दिखने लगा। राजीव गांधी की चुनावी सभा 21 मई को श्रीपेरम्बदूर में होनी थी। 20 की रात शिवरासन नलिनि के घर रैली के विज्ञापन वाला अखबार लेकर पहुंचा और तय हो गया कि अब 21 को अपना काम करना है। शुभा ने धानू को बेल्ट पहना कर प्रैक्टिस करवाई। 20 मई की रात को सभी ने साथ मिलकर फिल्म देखी और सो गए। श्रीपेरबम्दूर की रैली में राजीव गांधी के आने में देरी हो रही थी। राजीव गांधी आए,धनु उनके पास जाने की कोशिश कर ही रही थी कि एक महिला सब इंस्पेक्टर ने उसे दूर रहने को कहा। राजीव गांधी ने उसे अपने पास बुला लिया। राजीव के पास पहुंचते ही धनु ने माला पहनाई, पैर छूने के लिए झुकी और विस्फोट कर दिया।
उस विस्फोट के साथ हमने देश की संभावनाओं को भी खो दिया था।भरे गले से दूरदर्शन के न्यूज़ रीडर्स इस ख़बर को पढ़ रहे थे।