रंगून में दफन है भारत का अंतिम बादशाह, ऐसी है यंगून की कहानी
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फिल्म ‘रंगून’ का ट्रेलर आते ही लोग शाहिद और कंगना की लव केमेस्ट्री की बातें करने लग है। फिल्म में दोनों के बीच कुछ बोल्ड सीन भी बताए गए है। वैसे रंगून आज पहली बार फिल्म में उपयोग नहीं हो रहा है पहले भी एक गाने में रंगून का प्रयोग हो चुका है गाना था ‘मेरे पिया गया रंगून वहां से किया है टेलीफोन’। ये गाना भी उस जमाने के हिट गानों में से एक था।
इनके पिया रंगून तो गए है लेकिन क्या आप जानते है कि रंगून आखिरकार है कहां और क्यों इतना फेमस है। इतिहास पढ़ने वालों को शायद इस बारे में ज़्यादा जानकारी होगी लेकिन एक आम आदमी अभी भी इससे कोसों दूर है। अगर आप नहीं भी जानते हैं तो भी कोई बात नहीं क्योंकि यहां हम आपको रंगून के बारे में ही कुछ ख़ास बातें बताने जा रहे हैं।
मजे की बात है कि नक्शे में अगर देखा जाए तो रंगून ज़्यादा दूर नहीं है। भारत का एक पड़ोसी देश है जो मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड की सीमा से सटा हुआ है इसका नाम है ‘म्यांमार’। म्यांमार को पहले ‘बर्मा’ भी कहा जाता था इसकी राजधानी ‘यंगून’ है जिसे पहले ‘रंगून कहा जाता था। रंगून का भारत से गहरा नाता है क्योंकि भारत के सैनिकों ने रंगून को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी थी।
रंगून के बारे में ज्यादा कुछ बताने से पहले आपको बता दें कि म्यांमार इस विश्व का 44वां बड़ा देश है। और द. ऐशिया का सबसे बड़ा देश है। इसकी जनसंख्या 2014 की जनगणना अनुसार 55,746,253 है। इस देश में साक्षरता की दर 83 प्रतिशत है। म्यांमार काफी सुंदर और हरा-भरा देश है। इस देश की ज़्यादातार आबादी टूरिज्म और खेती पर निर्भर है। यहां की जीडीपी आधी से ज़्यादा खेती पर ही निर्भर है।
ये तो हुई म्यांमार यानी बर्मा की बात अब बात करते है रंगून यानि यंगून की। यंगून इस देश का एक खूबसूरत शहर है जो इस देश की राजधानी भी है। यंगून में ही यंगून नदी भी स्थित है जो यहां पर पानी की आपूर्ति को पूरा करती है। यंगून को म्यांमार का कमर्शियल हब भी कहा जाता है क्योंकि यहां से चावल, पेट्रोलियम, कपास आदि का आयात-निर्यात किया जाता है।
विश्व युद्ध में भूमिका
साल 1939 से 1945 में हुए द्वितीय विश्व युद्ध में म्यांमार और रंगून की प्रमुख भूमिका रही है। इस विश्व युद्ध में भारत के सैनिकों लगभग 2,00,000 लोग शामिल थे। विश्व युद्ध के दौरान ही दिसंबर 1942 में जापान ने बर्मा पर अपना कब्जा जमाना शुरू किया। जिनका डटकर सामना किया भारतीय और ब्रिटिश सैनिकों ने।
भारतीय सैनिकों के पास उस समय प्रशिक्षण की कमी थी इसलिए जापानी सैनिकों ने चालबाजी से उन्हें पहले घेर लिया। उस समय 1942 से 1943 तक उन्होंने म्यांमार के चिंदविन नदी और इसके ऊपरी हिस्से पर कब्जा बनाए रखा। लेकिन 1944 में भारत और ब्रिटिश सैनिकों ने जापानियों के इस हमलें को नाकाम कर दिया। इस हमलें में दोनों ओर के कई सैनिक मारे गए थे और बड़ा नुकसान हुआ था।
1945 में जनवरी और मार्च में चली शुरू हुई मेइक्तिला और मंडल की लड़ाई। इस लड़ाई में भारतीय सेना ने जापानी सेना को कड़ी टक्कर दी। इस हमलें में भारतीय सेना द्वारा रंगून में जापानी सेना पर हवाई तथा जल मार्ग से हमला किया गया था लेकिन हमले की शुरूआत में ही जापानी सेना रंगून छोड़कर चली गई थी।
जानकारी के मुताबिक भारत का आखिरी बादशाह भी रंगून में ही दफन है। भारत के अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का शव 1991 तक एक अज्ञात कब्र में दफन पड़ा हुआ था। बद में एक खुदाई के दौरान बादशाह की कब्र के बारे में पता चला। बहादुर शाह जफर का मकबरा रंगून में ही स्थित है। उनके चाहने वाले मकबरे के दर्शन के लिए आते रहते हैं। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा निर्वासित किए जाने के बाद जफर का सात नवंबर 1986 को निधन हो गया था।
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