4 बार हुआ था रतन टाटा को प्यार, अभी तक हैं कुंवारे
- - Advertisement - -
इंडिया में अमीर आदमियों की लिस्ट में कुछ चुनिंदा नाम ही है जैसे अंबानी, टाटा, बिरला, महिन्द्रा। ये वो लोग है या वो नाम है जिनका इंडिया में बोलबाला चलता है। ये मान लो कि इंडिया की इकॉनोमी को इनसे काफी ज़्यादा फर्क पड़ता है। इन दिनों सबसे ज़्यादा चर्चा में रहने वाला नाम ‘टाटा’ है। पिछले दिनों साइरस मिस्त्री को हटाने के बाद से ही यह कंपनी काफी सुर्खियों में बनी हुई है।
टाटा समूल के चेयरमैन रतन टाटा भी पिछले दिनों काफी सुर्खियों में रहे हैं। रतन टाटा सरल स्वभाव के दिग्गज बिजनेसमैन है। उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान हमेशा होती है। रतन टाटा देश के कई युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत रहे हैं और 28 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के मौके पर हम आपको उनके बारे में कुछ ख़ास बातें बताने जा रहे हैं।
इंडिया के टॉप बिजनेसमैन और अमीरों में से एक रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। उनकी माता सोनू टाटा तथा पिता नवल टाटा थें। रतन टाटा का जन्म किसी गरीब फैमिली में नहीं बल्कि एक रईस घराने में हुआ था। उनके पिता नवल टाटा भी एक बिजनेसमैन थे इसलिए उन्हें बिजनेस में हाथ जमाते देर न लगी।
1940 में रतन टाटा के माता-पिता अलग हुए। अलग होते समय रतन सिर्फ 10 साल के थे उस समय उनका पालन-पोषण उनकी बड़ी माँ नवाईबाई टाटा ने किया। रतन टाटा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जॉन केनौन स्कूल में की थी। इसके बाद उन्होंने वास्तुकला में बीएससी की डिग्री ली। 1962 में रतन टाटा ने हावर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम का अभ्यास किया।
रतन टाटा को बिजनेस में आने के लिए ज़्यादा मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ा। साल 1962 में वे अपने पारिवारिक व्यावसाय टाटा ग्रुप में शामिल हुए थे। बिजनेस में शामिल होने से पहले उन्होंने आईबीएम कंपनी में भी जॉब किया था। रतन टाटा जब बिजनेस में शामिल हुए तब उन्हें टाटा स्टील को आगे बढ़ाने के लिए जमशेदपुर जाना पड़ा।
1971 में उनकी नियक्ति नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स के डायरेक्टर के पद पर की गई। जिस समय रतन टाटा को इस कंपनी में नियुक्त किया गया था उस समय कंपनी की हालत बहुत खराब थी। कंपनी 40 प्रतिशत के नुकसान में जा रही थी। रतन टाटा के कंपनी में शामिल होने के बाद उन्होंने कंपनी को मुनाफा करवाया और ग्राहक शेयर मार्केट को भी बढ़ावा मिला।
साल 1981 में जे. आर. डी टाटा ने रतन टाटा को अपने उधोगों का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। उनके इस फैसले से पूरी इंडस्ट्री में बवाल मच गया क्योंकि उस समय रतन टाटा ज़्यादा अनुभवी नहीं थे जो इतने विशाल उधोग जगत को संभाल सके, इसी विरोध के चलते दस साल बाद उनकी नियुक्ति टाटा ग्रुप के अध्यक्ष के पद पर की गई।
रतन टाटा के अध्यक्ष बनने के बाद कंपनी में कई बदलाव आए और कंपनी देश की टॉप कंपनी में गिनी जाती है। रतन टाटा को उनके जानने वाले काफी सीधे और सरल स्वभाव का मानते है। रतन टाटा काफी परोपकारी व्यक्ति भी हैं उनके 65 प्रतिशत से ज़्यादा शेयर चैरिटेबल संस्थाओं में निवेश किए गए है।
रतन टाटा का मानना है कि भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है और साथ ही भारत में मानवता का विकास करना है। परोपकारियों को अलग नज़र से देखना चाहिए, पहले परोपकारी अपनी संस्थाओं और अस्पतालों का विकास करते थे जबकि अब उन्हें अपने देश का विकास करने की जरूरत है।
रतन टाटा की निजी ज़िन्दगी भी काफी सुलझी हुई है। रतन टाटा अभी तक कुंवारे है, उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें उनके जीवन में चार बार प्यार हुआ था लेकिन वे कुंवारे ही रहे। उनके अनुसार हर बार हालात कुछ ऐेसे बन जाते है कि किसी न किसी कारण से वे शादी करने से चूक जाते थे।
अपनी लवस्टोरी बड़ौदा मैनेजमेंट एसोसिएशन के प्रोग्राम में स्टूडेंट्स को सुनाते हुए उन्होंने बताया कि उन्हें एक बार एक अमेरिकी लड़की से प्यार हुआ था। उस वक्त 1962 का भारत-चीन युद्ध चल रहा था। टाटा और उनकी प्रेमिका ने शादी करने का फैसला लिया। उस समय रतन टाटा तो भारत आ गए लेकिन उनकी प्रेमिका युद्ध के चलते भारत न आ सकीं। आखिर में उनकी प्रेमिका ने किसी और से शादी कर ली।
रतन टाटा को बिजनेस करने के अलावा बुक पढ़ना बहुत पसन्द है। उन्हें लोगों की सक्सेस स्टोरी पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। टाटा को बचपन से ही बहुत कम बातचीत पसन्द है और वो अपने सहयोगियों से भी सिर्फ औपचारिक बातें ही करती है। रतन टाटा को बुक्स के अलावा कार और डॉग्स का भी शौक है।