Wednesday, September 20th, 2017 06:31:02
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होली मनाए जाने के पीछे हैं 5 कहानियां




Art & Culture

दीवाली की तरह ही होली के त्योहार को भी बुराई पर अच्छाई की जीत के त्योहार के रूप में ही मनाया जाता है। होली को मनाए जाने के पीछे प्रहलाद और होलिका की कहानी को तो सभी जानते हैं लेकिन हम यहां आपको बताने जा रहे हैं होली से जुड़ी कुछ ऐसी लोक कथाओं के बारे में जिनके बारे में शायद आप पहले नहीं जानते होंगे। तो आइए जानते हैं कौन-सी हैं वो लोक कथाएं…

राधा-कृष्ण की कहानी

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प्रेम के प्रतीक राधा-कृष्ण की अमर प्रेम कहानी में होली का बड़ा ही अनोखा वर्णन किया गया है। बसंत ऋतु के मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना कृष्ण की लीला का सबसे विशेष अंग बताया गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा-कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है। बरसाने और नंदगांव की लट्ठमार होली तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है ही। श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी धूमधाम से होली मनाने की परंपरा है। इतना ही नहीं रंगों की होली से एक दिन पहले होली जलाई जाती है अहंकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या और संशय की, जिसके बाद मिलता है विशुद्ध प्रेम।

शिव-पार्वती की कहानी

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देवी पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। ऐसे में कामदेव पार्वती की सहायता के लिए आए। कामदेव ने शिव की तपस्या भंग कर दी जिससे शिवजी क्रोधित हो गए और उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। इसके बाद शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है। कामदेव के भस्म होने पर उनकी पत्नी ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव के लिए जीवनदान की गुहार की। भोलेनाथ इस पर प्रसन्न हुए और उन्होंने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। मान्यता के मुताबिक इस दिन रंगों का त्योहार मनाया जाता है।

कृष्ण और पूतना की कहानी

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कंस ने शिशु कृष्ण की हत्या करने की योजना बनाई। इसके लिए उसने पूतना राक्षसी का सहारा लिया, जो सुंदर रूप बनाकर महिलाओं में आसानी से घुल मिल जाती थी। उसका काम स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। भगवान कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था। लिहाजा पूतना वध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

ढूंढी राक्षसी की कहानी

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प्राचीन काल में राजा पृथु के राज्य में ढुंढी राक्षसी थी जो बच्चों को मारकर खा जाती थी। ढुंढी ने देवताओं को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। लेकिन भगवान शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से वह मुक्त नहीं थी। राजा पृथु ने ढुंढी के अत्याचारों से तंग आकर राजपुरोहित से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा। पुरोहित ने कहा कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी, सब बच्चे लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें। ऊंचे स्वर में तालियां बजाते हुए मंत्र पढ़ें, ज़ोर ज़ोर से हंसें, गाएं, चिल्लाएं और शोर करें तो राक्षसी मर जाएगी। जब ढुंढी राक्षसी इतने सारे बच्चों को देखकर वहां पहुंची तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीचड़ फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदेड़ दिया। इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।

प्रह्लाद और होलिका की कहानी

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होली से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानी भक्त प्रह्लाद, हिरण्यकश्यप और होलिका से जुड़ी है। प्रह्लाद का पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप नास्तिक और निरंकुश था और वह चाहता था कि उसका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे। लेकिन प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कई तरह से यातनाएं दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। ऐसे में हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। लेकिन हुआ इसका उल्टा। होलिका अग्नि में जल गई और भगवान भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।

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