केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य देशों में स्कूल में सेक्स ऐजुकेशन अहम मुद्दा नहीं माना जाता। इसलिए भारत और अन्य देशों की किताबों में इस तरह के कंटेंट को पढ़ाया भी नहीं जाता। लेकिन नाइजीरिया के सीएसई कुरिकुलम को स्कूल में “सेक्स केंटेंट” शुरू करने पर नाइजीरिया में बवाल मचा हुआ है। बता दें कि पश्चिमी अफ्रीका दुनिया के सबसे धार्मिक देशों में गिना जाता है।
दरअसल, नाईजीरिया के सीएसई सिलेबस में एचआईवी एजुकेशन और टीनएज प्रेग् नेंसी और यौन हिंसा जैसे विषय शामिल हैं। इसका मकसद बच्चों को उनके शरीर और उसकी क्रियाओं के बारे में जानकारी देना है। सरकारी और प्राइवेट प्राइमरी और सैकेंडरी स्कूलों में बच्चों की बुक्स में सैक्स एजुकेशन से संबंधित विषय शामिल हैं। इन कक्षाओं में बच्चों की उम्र 8 से 15 साल है।
क्या है पूरा मामला
अफ्रीका न्यूज नाम की एक वेबसाइट के अनुसार, जूनियर सेकंड्री स्कूल (JSS 1) की सोशल स्टडीज टेक्स्टबुक्स के पेज नंबर 50 में लिखे कॉन्टेंट की काफी आलोचना हो रही है। किताब में ‘सेक्शुअल प्लेज़र पाने और देने और सेक्शुअल इंटरकोर्स के बिना क्लोजनेस डिवेलप करने’ जैसे टॉपिक्स पर कॉन्टेंट लिखा गया है। ‘किसिंग, हग करना और म्युचुअल मास्टरबेशन’ जैसे विषयों पर भी टेक्स्टबुक में लिखा गया है। इन्हीं कारणों से नाइजीरिया में विवाद छिड़ गया है।
एक बच्चे के पिता ने फेसबुक पर टेक्स्टबुक पर लिखे इस कॉन्टेंट पर चिंता जताई और दूसरे पैरंट्स से भी अपने बच्चों को प्रोटेक्ट करने के लिए आगे आने को कहा।उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि ‘हमारे बच्चों को स्कूल में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर हमें कड़ी नजर रखनी होगी और उन्हें शास्त्रों के हिसाब से पढ़ाना होगा। इस शख्स को जनता का सहयोग मिला और लोगों ने देश के एजुकेशनल बोर्ड की निंदा की। यहां तक कि टेक्स्ट बुक को रद्द करने की याचिका भी दायर कर दी गई। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निर्देश दिया है कि 12 वर्ष और उससे अधिक आयु वाले बच्चों को स्कूल में सेक्स एजुकेशन दी जानी चाहिए, ताकि किशोरावस्था में गर्भधारण और यौन संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों पर लगाम लगाई जा सके।
क्या है जानकारों की राय-
~सेक्स एजुकेशन किशोरावस्था में कितनी सहायक साबित हो सकती है, इसके पक्ष में भी कई तर्क मौजूद हैं। जानकारों का कहना है कि वे बच्चे जिन्हें स्कूल में ही सेक्स से जुड़े विभिन्न पहलू समझा दिए जाते हैं वह किसी भी प्रकार के बहकावे में नहीं आते। भारत में महिला और बाल विकास मंत्रालय की ओर से बाल यौन उत्पीडऩ पर कराए गए 2007 के अध्ययन के मुताबिक, 53.2 प्रतिशत बच्चे यौन हिंसा का शिकार होते हैं। इसलिए जरूरी हो जाता है की और देशों की तरह भारत में भी जल्द स्कूली पाठ्यक्रम में सेक्स एजुकेशन को तरजीह दी जाए जिससे बच्चें भी इस मामले पर खुलकर बात कर सकें क्योंकि सेक्स को टैबू बनाने का ही नतीजा है आज बच्चे यौन हिंसक का शिकार हो रहे है और इंटनेट पर भी सेक्सजाल में आसानी से फंसकर गलत जानकारी हासिल का बैठते है। समय की मांग है कि सेक्स पर भी बात की जाए।