इन दिनों शॉर्ट का जमाना है। फिर चाहे वो सफलता हासिल करने की बात हो, या फिर वेबसाइट्स पर लिखने वाले शॉर्ट आर्टिकल्स की। इतना ही नहीं आजकल तो फेसबुक का स्टेटस, व्हाट्सएप के मैसेज इनके जरिए लोग कम से कम शब्दों में अपनी बात बयां करना बेहतर समझते हैं। जाहिर है अब किसी के पास इतना समय नहीं कि फुर्सत से लंबा मैसेज पढ़ें इसलिए ये शॉर्ट मैसेज पढऩे की संभावना बेहतर होती है। प्रेक्टिकली इस बात पर विचार करके देखेगें तो सच है, लेकिन ईमेल लिखने के संदर्भ में एक साधारण सी बात – छोटा है तो बेहतर है – दिल्ली यूनिवर्सिर्टी की एक किताब में लिखी है। इसमें लिखा गया है कि ई-मेल स्कर्ट की तरह छोटा होना चाहिए। डीयू की बिजनेस कम्यूनिकेशन की किताब में ये लिखी गई इस बात को लेकर बवाल मच गया है।
किताब के एक चैप्टर में स्टूडेंट्स को ई-मेल लिखने की टिप्स दी गई है और कहा गया है कि ईमेल का मैसेज स्कर्ट की तरह छोटा होना चाहिए ताकि वो दिलचस्प लगे। हालांकि ऐसा नहीं है कि किताब के लेखक को स्कर्ट के छोटे होने से कोई परेशानी है या उन्हें लड़कियों के स्कर्ट पहनने से कोई एतराज है। उन्होंने एक स्कर्ट का उदाहरण देते हुए मैसेज को शॉर्ट में लिखने की सलाह छात्रों को दी है। बस लिखने के तरीके ने अर्थ से अनर्थ कर दिया।
किताब का नाम से बेसिक बिजनेस कम्यूनिकेशन। इस किताब को लिखा है सीबी गुप्ता ने। जो डीयू के एसआरसीसी कॉलेज के कॉमर्स डिपार्टमेंट के हेड रह चुके हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर जब इस बात को लेकर चर्चा होने लगी तो विवाद शुरू हो गया है। हालंाकि लेखक ने अपनी गलती को माना और इस बात को पब्लिशर से हटाने के लिए कह दिया है
10 साल में पहली बार गई नजर-
जानकर हैरत होगी कि डीयू के स्टूडेंट्स पिछले दस साल से इस किताब को पढ़ रहे हैं। लेकिन इस चैप्टर की एक लाइन को पढ़कर कमला नेहरू कॉलेज की एक स्टूडेंट ने किताब की विवादास्पद लाइन पर गौर किया। किताब में लिखा है कि ई-मेल मैसेज स्कर्ट की तरह होने चाहिए। इतने शॉर्ट की दिलचस्प लगें और इतने लंबे की सभी बातें उसमें आ सकें। अगर ई-मेल लंबे होंगे तो लोग उसे नहीं पढ़ेंगे या फिर उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देंगे। हालांकि लेखक ने कहा है कि मुझे अंदाजा नहीं था कि इस बात से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी।
बिना कुछ सोचे समझे लिखी गई ये बात लोगों को घिसी पिटी सोच को दर्शाती है। एक ताजा उदाहरण के बारे में हम आपको बताते हैं। हाल ही में एक ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल अमेजॉन ने एक नई एशट्रे वेबसाइट पर लांच की है, जिसमें एक महिला पैर फैलाएं बाथ टब में लेटी है। इस सोच के साथ इसे लांच करने वाले शख्स की सोच साफ समझ आती है। महिला कोई चीज नहीं , जिसकी नुमाइश किसी प्रोडक्ट को लांच करने के लिए की जाए। अगर वह इस ट्रे पर इस महिला का इस तरह की तस्वीर न दिखाते तो भी एक अच्छी ऐश ट्रे बिकती।
लोगों की सोच छोटी है, लड़कियों की स्कर्ट नहीं…
जब भी महिला के साथ हुई छेडख़ानी या रेप की वारदात होती है, तो भी उसमें एक महिला को ही दोषी माना जाता है, क्योंकि उसने छोटे कपड़े पहने होते हैं। लेकिन बैंगलोर में हुए एक सर्वे में ये बात सामने आई है कि पुरूषों द्वारा महिलाओं के साथ की गई छेडख़ानी का कारण उनकी छोटी स्कर्ट और मॉडर्न कपड़े नहीं है बल्कि पुरूषों की छोटी सोच है। इस सर्वे में उन कपड़ों की तस्वीरें मांगी गई थी, जो उन्होंने तब पहन रखे थे जब उन्हें छेड़ा गया था। नतीजे आश्चर्यजनक आए, तो सारा सच सामने। इसमें सलवार, कुर्ते, जींस यहां तक साड़ी की तस्वीरें भी सामने आईं। यानि लड़कियों में दिलचस्पी , चाहे वो अच्छी हो या बुरी का कपड़े या टांगे दिखाने से कोई रिश्ता नहीं है।
अगर आपको याद हो तो इससे पहले भी सीबीएसई की एक फिजिकल एजुकेशन की किताब ने लड़कियों के फिगर के बारे में बताया था। इस बात पर भी काफी बवाल मचा था। कुल मिलाकर किताबों में लिखी जाने वाली बातों को महिलाओं से जोड़कर आखिर क्यों लिखा जाता है ये तो समझ नहीं आता, लेकिन सिर्फ अपने लेख को शॉर्ट स्कर्ट की तरह दिलचस्प बनाने के लिए एक लेखक अपनी सोच को दुनिया के सामने जगजाहिर जरूर कर देता है।