कहते है यदि हौसला बुलंद हो तो हर मंजिल हासिल की जा सकती है. तो चलिए आज हम आपको ऐसे ही एक शख्स से मिलवाने जा रहे है जिन्होंने वह कर दिखाया जो अभी तक कोई भारतीय नही कर सका. जी हाँ इस शख्स ने भारतीय सेना में रहते हुए दुनिया की सबसे मुश्किल रेस को पूरा कर लिया है इनके इस जुनून को लोग आज लोग सलामी दे रहे है.
-दरअसल हम बात कर रहे है भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ. श्रीनिवास गोकुलनाथ की जिन्होंने कश्मीर में पोस्टिंग के दौरान अपनी ट्रेनिंग लेकर दुनिया की सबसे मुश्किल रेस अक्रॉस अमरीका (RAAM) को सातवें स्थान के साथ पूरा किया.
-आपको बता दे कि इस रेस में 5000 किलोमीटर साइकिल चलानी होती है. खास बात तो यह की इस रेस को 12 दिनों में पूरा करना होता है. यह रेस अमरीका के पश्चिमी किनारे कैलिफ़ोर्निया से शुरू होती है और अमरीका के 12 राज्यों से होकर एवं पूर्वी किनारे से होते हुए मैरीलैंड के एन्नापोलिस पर ख़त्म होती है.
-श्रीनिवास बताते हैं, ”मैंने 11 दिन, 18 घंटे और 45 मिनट में यह रेस पूरी की और ऐसा करने वाला पहला भारतीय बन गया.” उन्होंने कहा, ”मैं जो भी हूं भारतीय सेना की वजह से हूं. रिस्क लेने का बल मुझे सेना से ही मिला. मै पिछले आठ साल रेस को पूरा करने का सपने देख रहे थे. मुझे हमेशा समय पर छुट्टी मिली और छुट्टियों के दौरान मैं ट्रेनिंग करता था.”
-आगे श्रीनिवास कहते हैं, ”रेस के शुरुआती 30 घंटों में डीहाइड्रेशन की वजह से मैं बहुत पीछे हो गया था. मेरे क्रू के साथी भी परेशान हो रहे थे. तब मैंने और अपनी पत्नी ने बात की. हमने तय किया कि इसे किसी तरह पूरा करना है, अधूरा नहीं छोड़ना. तब मैं पिछड़कर 27वें पायदान पर पहुंच गया था.”
-उन्होंने कहा, ”मैंने ख़ुद को मानसिक तौर पर तैयार किया. ख़ुद को भरोसा दिलाया कि ये मैं कर सकता हूं. मुझे एक बार भी नहीं लगा कि मैं पीछे रह जाऊंगा. मैंने फिर से एनर्जी जुटाई और सातवें नंबर पर रेस पूरी की.”
-वो बताते हैं, ”मुझे ट्रेनिंग के लिए कम से कम दो साल लगे. हर दिन मैं तीन से पांच घंटे ट्रेनिंग करता था और रविवार को 10 घंटे ट्रेनिंग में बिताता था. मैंने ट्रेनिंग के दौरान 40,000 किमी साइकिल चलाई.”
-“मैंने अपने आत्मविश्वास को मज़बूत करने के लिए लेह से कन्याकुमारी तक साइकिल से सफ़र किया. यह सफ़र 15 दिन और 17 घंटों में ख़त्म हुआ. इसके लिए मेरा नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज हुआ.”
-बता दे कि 2016 गोकुलनाथ यह रेस हार गये थे. लेकिन उनकी पत्नी ने उनकी हिम्मत बढ़ाई और इस साल वह कामयाब हो गये.