जानिए क्यों बजते हैं ’सरदारों के बारह’
इसी कारण उन्हें “हिन्द की चादर” से भी जाना जाता है। उनके देहावसान के बाद उनके सुयोग्य बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिंदुत्व की रक्षा के लिए आर्मी का निर्माण किया जो कालांतर में ‘सिख’ के नाम से जाने गए।
1739 में इरानी आक्रांता नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला करते हुए हिन्दुस्तान की बहुमूल्य संपदा को लूटना शुरू कर दिया। इन हवसी आक्रमणकारियों ने करीब 2200 भारतीय महिलाओं को बंधक बना लिया।
सरदार जस्सा सिंह जो की सिख आर्मी के कमांडर-इन-चीफ थे ने इन लुटेरों पर हमला करने की योजना बनायी। लेकिन उनकी सेना दुश्मन की तुलना में बहुत छोटी थी इसलिए उन्होंने आधी रात को बारह बजे हमला करने का निर्णय लिया।
महज कुछ सैकड़ों की संख्या में सरदारों ने कई हज़ार लुटेरों के दांत खट्टे करते हुए महिलाओं को आजाद करा दिया। सरदारों के शौर्य और वीरता से लुटेरों की नींद और चैन हराम हो गया।
यह क्रम नादिर शाह के बाद उसके सेनापति अहमद शाह अब्दाली के काल में भी जारी रहा। अब्दालियों और ईरानियों ने अब्दाल मार्केट में हिन्दू औरतों को बेचना शुरू कर दिया। सिखों ने अपनी मिडनाईट (12 बजे) में ही हमला करने की स्ट्रैटिजी जारी रखी और एक बार फिर दुश्मनों की आंखों में धूल झोंकते हुए एक बार फिर महिलाओं को बचा लिया।
सफलता पूर्वक लड़कियों और औरतों के सम्मान की रक्षा करते हुए सिखों ने दुश्मनों और लुटेरों से अपनी इज्जत की हिफाज़त की। रात 12 बजे के समय में हमला करते समय लुटेरे कहते थे “सरदारों के बारह बज गए”।
ऐसी वीरता, साहस और ईमानदारी के पर्याय सरदारों को “12 बज गए” कह कर चिढाना और उनका मज़ाक बेहद शर्मनाक है। सरदारों के “12 बज गए” एक ऐसा मुहावरा है जो की उन लुटेरों के ‘गीदड़पन’ और हमारी वीरता का पर्याय है इसे लाफिंग मैटर के रूप में नहीं बल्कि गर्व के रूप में कहिये।
Courtesy : Youtube, bspabla.com