Sunday, September 10th, 2017 15:14:14
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जब-जब हुए लालू से दूर, तब-तब आए BJP के नज़दीक नीतीश




जब-जब हुए लालू से दूर, तब-तब आए BJP के नज़दीक नीतीशPolitics

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पिछले 20 सालों में शायद भारत की राजनीति में 2 ही ऐसे राजनेता रहे हैं, जिनका ग्राफ लगातार ऊपर ही ऊपर चढ़ता गया। नरेंद्र मोदी BJP के राष्ट्रीय सचिव बने, फिर महासचिव (1998) बने, उसके बाद 2001 से लगातार गुजरात के सीएम रहने के बाद आज हमारे पीएम है। वहीं नीतीश कुमार अटल सरकार में 1998 से 2004 तक केंद्रीय मंत्री रहे और उसके बाद 2005 से लगातार बिहार के सीएम हैं। खास बात यह है कि दोनों नेताओं की छवि बेहतर प्रशासक की है। आज 28 जुलाई, 2017 को नितीश महागठबंधन की अनिवार्यता को दरकिनार कर लालू का साथ छोड़ पुनः NDA का दामन थाम बिहार के सीएम हैं, उन्होंने साफ़ कर दिया कि सेक्युलरिज़्म का बहाना भ्रष्टाचार को छुपाने या मदद देने के लिए अब नहीं चलने वाला

BJP से नीतीश का 17 सालों का रिश्ता, मोदी के पीएम उम्मीदवार बनते ही टूटा

1995 में जब BJP के केंद्रीय नेतृत्व के बीच नरेंद्र मोदी राजनीति में उभर ही रहे थे, उसी समय बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद नीतीश कुमार की समता पार्टी NDA का हिस्सा बनने जा रही थी। मोदी उस साल BJP के राष्ट्रीय सचिव बनकर दिल्ली पहुंचे। वहीं 1996 का लोकसभा चुनाव समता पार्टी ने BJP के साथ मिलकर लड़ा। इसके बाद समता पार्टी जिसका विलय बाद JDU में हो गया, उसका BJP के साथ 17 सालों तक रिश्ता रहा, जब तक नरेंद्र मोदी पार्टी की तरफ से पीएम उम्मीदवार घोषित नहीं हुए। नीतीश कुमार ने जून 2013 में बीजेपी के साथ नाता तोड़ लिया लेकिन उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी. 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश को केवल 2 सीटें मिली, जबकि लालू को 4 सीटें मिलीं. इन दोनों को पछाड़ते हुए BJP की अगुवाई वाले NDA ने 31 सीटों पर कब्जा जमाया.

40 साल पहले लालू और नीतीश ने हाथ मिलाया था

लालू और नीतीश पहली बार जयप्रकाश नारायण के सोशलिस्ट आंदोलन के दौरान साथ आए. ये समय का तकाजा था कि दोनों को एक ही दुश्मन के खिलाफ लड़ना था. आज से तकरीबन 40 साल पहले लालू और नीतीश ने हाथ मिलाया था. उस दौरान भी लालू की लड़ाई हिंदुत्व की विचारधारा से थी और इनके मुकाबले अपनी ताकत बनाए रखने के लिए लालू नीतीश कुमार जैसे सोशलिस्ट नेता को अपने साथ रखना चाहते थे. इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश का आंदोलन दिल्ली में सत्ता परिवर्तन लाने में कामयाब रहा. ये युवा नेता रूप में नीतीश और लालू की भी सफलता थी. दोनों की सियासत तब पटरी पर थी.

समता पार्टी बनाकर लालू से अलग राह चुन ली

1990 में बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल को जीत मिली. सीएम पद की रेस में नीतीश कुमार ने लालू की पूरी मदद की और लालू बिहार के सीएम बने. 2 साल बाद ही नीतीश और लालू के बीच मतभेद उत्पन्न होने लगे. कथित तौर पर नौकरियों में एक जाति को प्राथमिकता देने और ट्रांसफर-पोस्टिंग में भ्रष्टाचार की वजह से नीतीश कुमार मौजूदा RJD प्रमुख लालू से नाराज थे. 1994 में नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाकर लालू से अलग राह चुन ली. लेकिन विधानसभा चुनाव में नीतीश को केवल सात सीटें मिली, जबकि लालू दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने.

राबड़ी को सीएम की कुर्सी पर आसीन कर जेल गए लालू

1996 में लालू की सियासी जिंदगी में भूचाल आया. पटना हाईकोर्ट ने चारा घोटाले में CBI जांच के आदेश दिए और लालू को जेल जाना पड़ा. कहा जाता है कि मामले में जांच के लिए दाखिल याचिका के पीछे नीतीश कुमार का बड़ा हाथ था. लेकिन लालू ने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पकड़ ढीली नहीं होने दी. अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सीएम की कुर्सी पर आसीन कर जेल चले गए. और अगले विधानसभा चुनाव में भी बाजी मार ले गए.

15 साल के लालू युग वाली लालटेन बुझा दी नीतीश ने

मोदी-नीतीश की आपसी कहानी 15 साल पहले गुजरात दंगों के बाद से शुरू होती है। उस समय नीतीश केंद्र में मंत्री थे। बिहार के ही प्रभावशाली नेता और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने दंगों के बाद अटल कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। नीतीश ने बीजेपी से रिश्ता नहीं तोड़ा लेकिन उनकी मोदी से दूरी बढ़ती गई। 2005 में तत्कालीन बीजेपी महासचिव और बिहार के प्रभारी अरुण जेटली के समर्थन से नीतीश एनडीए की तरफ से उम्मीदवार बन गए। हालांकि उन्होंने बीजेपी से ये वादा ले लिया कि बिहार की राजनीति से मोदी दूर रहेंगे। 2005 में बिहार में लालू-राबड़ी राज का खात्मा हुआ और NDA को भारी बहुमत से जीत मिली। NDA की सरकार में बतौर मंत्री कुछ दिन दिल्ली में रहे और फिर बिहार लौटे.

2009 में एक ही मंच पर थे मोदी और नीतीश

2009 में लालकृष्ण आडवाणी BJP की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार थे। उस समय मई में पंजाब के लुधियाना में NDA की बड़ी रैली हुई। जिसमें मंच पर मोदी और नीतीश भी मौजूद थे। पत्रकार संकर्षण ठाकुर के मुताबिक नीतीश उस रैली में नहीं जाना चाहते थे। अगले दिन जब अखबारों में नीतीश-मोदी की एक साथ वाली फोटो दिखी तो नीतीश परेशान हो गए थे।

नीतीश-मोदी की हाथ मिलाते हुए तस्वीर से आई गहरी दरार

2010 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। इसके मद्देनजर BJP ने 12 जून को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पटना में आयोजित की। बैठक के दिन ही बिहार के सभी प्रमुख अखबारों में नीतीश-मोदी की हाथ मिलाते हुए तस्वीरें छपी। इसमें कोसी बाढ़ आपदा के समय गुजरात सरकार द्वारा पांच करोड़ रुपये की मदद का सचित्र विज्ञापन किया गया था। इस विज्ञापन को नीतीश कुमार ने बिना पूछे उनकी फोटो छापने और विपदा के समय दी गयी मदद-राशि का ढिढोरा पीटने वाला अनैतिक और गैरकानूनी कदम कहा था। नीतीश इतने नाराज हुए कि बीजेपी के बड़े नेताओं को सम्मान में दिए जाने वाले रात्रि भोज को रद्द कर दिया। साथ ही नीतीश ने गुजरात सरकार की ओर से दी गई 5 करोड़ रुपये भी राशि भी लौटा दी।

20 साल बाद लालू और नीतीश पुनः गले मिले

20 साल बाद लालू और नीतीश पुनः दोनों नेता गले मिले और फिर महागठबंधन की नींव पड़ी। कांग्रेस भी साथ आई और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में BJP की अगुवाई वाले NDA को करारी मात झेलना पड़ी। उस समय लालू को नीतीश की जरूरत थी और नीतीश को उनकी।लेकिन अब स्थिति पेचीदा हो गई है।

2017 की शुरुआत से ही मोदी के पुनः नज़दीक आते दिख रहे है नीतीश

2013 में बीजेपी-जेडीयू अलगाव के बाद मोदी-नीतीश दोनों नेताओं के एक दूसरे को लगातार भला-बुरा कहा। लेकिन पिछले 6 महीने से स्थितियां बदली नजर आ रही है। विपक्ष के नोटबंदी के विरोधों के बीच नीतीश ने नोटबंदी का समर्थन कर दिया। इसके बाद से कयासों का दौर शुरू हो गया है कि नीतीश मोदी के प्रति नरम होने लगे है। दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी ने भी बिहार सरकार के शराबबंदी के फैसले को ले कर नीतीश की सार्वजनिक तारीफ की थी।

BJP नीतीश की बेवजह आलोचना नहीं करेगी – अमित शाह

खास बात यह है कि कुछ दिनों पहले ही BJP अध्यक्ष अमित शाह ने नीतीश के लिए एक नरम कोना दिखाया। उन्होंने कहा कि BJP नीतीश की बेवजह आलाचेना नहीं करेगी। मजेदार बात है कि BJP बेनामी संपत्ति के आरोपों को लेकर उनके प्रमुख सहयोगी लालू प्रसाद यादव पर हमलावर है। आपको बता दें कि RJD सुप्रीमो और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ पड़े छापों के बीच लालू प्रसाद ने BJP को नया गठबंधन साथी मुबारक संबंधी ट्वीट कर गठबंधन में खटास आने का संकेत दिया था। हालांकि बाद में सफाई दी गई कि लालू के गठबंधन के नए साथी का आशय CBI, आयकर विभाग से था।

सोनिया की बैठक में नहीं पहुंचे नीतीश, लेकिन मोदी से मुलाकात की

राजनीति में प्रचलित कहावत है कि कोई भी व्यक्ति स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता। 5 साल पहले जब मोदी गुजरात के सीएम थे, तब आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों की बैठक में नीतीश दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों से गर्मजोशी से मिलते दिखे लेकिन मोदी के सामने से गुजरने के बाद भी उन्होनें हाथ नहीं बढ़ाया। पत्रकारों ने दोनों की फोटो एक साथ लेने के लिए आग्रह भी किया लेकिन न तो नीतीश हिले और ना ही मोदी रुके। लेकिन आज बदले हालात में आज नीतीश और मोदी की हाथ मिलाती तस्वीरें मीडिया में छाई हुई है। राष्ट्रपति उम्मीदवारों के चर्चा के बीच मीडिया इस मुद्दे को तूल देने में लगा कि नीतीश सोनिया गांधी द्वारा बुलाए बैठक में नहीं पहुंचे लेकिन मोदी से मुलाकात कर रहे हैं।

सेक्युलरिज़्म का बहाना भ्रष्टाचार को छुपाने या मदद देने के लिए अब नहीं चलने वाला

दिल्ली की सियासत में काफी उलटफेर हो चुका है। लालू और उनका परिवार भ्रष्टाचार, बेनामी संपत्ति के आरोप में घिरे हुए हैं। आज 28 जुलाई, 2017 को नितीश महागठबंधन की अनिवार्यता को दरकिनार कर लालू का साथ छोड़ पुनः NDA का दामन थाम बिहार के सीएम हैं, उन्होंने साफ़ कर दिया कि सेक्युलरिज़्म का बहाना भ्रष्टाचार को छुपाने या मदद देने के लिए अब नहीं चलने वाला, लेकिन यह बात तथ्यपरक रूप से सत्य साबित हुई है कि जब-जब नीतीश लालू से दूर हुए तब-तब BJP के वे करीब हुए हैं।

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