Thursday, August 31st, 2017
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सरकार क्यों नहीं चाहती सेनेटरी नेपकिन का हो ज्यादा उपयोग?




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जो मोदी सरकार परम महिला हितैषी होकर तीन तलाक जैसे संवेदनशील मुद्दे को छेड़ सकती है, क्या वह महिला-विरोधी रुख अख्तियार कर सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर यह शोर मचाया जा रहा है कि आधी आबादी द्वारा उनके मासिक-धर्म (Periods) के दौरान उपयोग किया जाने वाला हाइजेनिक सेनेटरी नेपकिन सरकार द्वारा 12% GST के दायरे में ला देने से यह गरीब महिलाओं की पहुँच से दूर हो गया है, जिससे उनके स्वस्थ के साथ खिलवाड़ हो रहा है। इसके पीछे सरकार ने अपनी मंशा अभी पूर्णरूपेण स्पष्ट नहीं की है, लेकिन बतौर एक थिंकर मैंने फैक्ट्स को स्टडी कर पाया की सरकार अस्थाई तौर पर सेनेटरी नैपकिन के यूज़ को बढ़ावा देना चाहती है और लेकिन पूर्णकालिक अथवा स्थाई तौर पर शायद यह नहीं चाहती है कि इस प्रकार के सेनेटरी पेड ज्यादा प्रचलन में आए। आइये क्रमशः इस पेज और अगले पेज पर जानते और समझते हैं, इस तस्वीर के इन दोनों पहलूओं को और समाज को इस मामले में सही दिशा देकर सरकार को सहयोग करते हैं।

तस्वीर का पहला पहलू :

यह कि प्राचीन काल से महिलाएँ अपने इस नियमित शारीरिक चक्र के उत्सर्जन से बचाव हेतु पुरानी हाइजेनिक पध्दति से धोकर सुखाए हुए स्वच्छ सूती कपड़ों अथवा नैचरल प्रोड़क्ट कॉटन (कपास/रुई) के पैड्स का उपयोग करती थी, तथा दैनिक या अर्द्धदिवसीय उपयोग के बाद उन्हें नियम-पूर्वक जलाकर नष्ट कर देती थी। लेकिन आज के इस आपाधापी के दौर में हर गैरजरूरी वस्तु की तरह यूज़्ड सेनेटरी पैड्स को डस्टबीन या कूड़ेदान का रास्ता दिखाकर अपने हाथ एंटीसेप्टिक से धो लिए जाते हैं. बाद में उनका साइकिल कैसे होगा और उसके क्या परिणाम होंगे इस पर बिलकुल भी विचार नहीं किया जाता।

कैसे किसी महिला के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यूज़्ड नेपकिन पुरे समाज के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं?

एक कंपनी पाथ द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार, एक अरब से ज्यादा नॉन-कमपोस्टेबल पैड (सेनेटरी नेपकिन) कचरा वाले क्षेत्रों और सीवर में डाले जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े शहरों की अधिकांश महिलाएं कमर्शियल डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें यह नहीं मालूम होता कि ये नैपकिन कुछ रासायनिक पदार्थो (डायोक्सिन, फ्यूरन, पेस्टिसाइड और अन्य विघटनकारी केमिकल्स) की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इसके निस्तारण की जानकारी के अभाव में अधिकांश महिलाएं इसे कचरे के डिब्बे में फेंक देती हैं, जो अन्य प्रकार के सूखे व गीले कचरे के साथ मिल जाता है। इसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता और खुले में सैनिटरी नैपकिन कचरा उठाने वाले के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।

सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके से निपटारा करना बड़ी चुनौती

जब भी कोई महिला डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन खरीदती है, तो उसके दिमाग में लंबे समय तक चलने वाला, आरामदायक, दाग मुक्त और पुरे दिन टिकाऊ होने की बात रहती है। ज्यादातर महिलाएं यह नहीं जानती कि भारत में हर महीने एक अरब से ज्यादा सैनिटरी पैड गैर निष्पादित हुए सीवर, कचरे के गड्ढों, मैदानों और जल स्रोतों में जमा होते हैं, जो बड़े पैमाने पर पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। भारत में महिलाओं की मासिक धर्म से जुड़ी भ्रांतिया व अंधविश्वास के साथ इस्तेमाल होने वाले सैनिटरी पैड का सुरक्षित तरीके से निपटारा करनाबड़ी चुनौती बन चुकी है। भारत सरकार जहां सभी महिलाओं व लड़कियों को, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना सुनिश्चित कर रही है, वहीं विशेषज्ञों ने सैनिटरी पैड के निस्तारण के मुद्दे पर खास ध्यान दिया, जो हर साल करीब 113,000 टन निकलता है। शायद इस समस्या को महसूस करने के बाद मोदी सरकार पिछले साल नए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (SWM) नियम को ले कर आई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

कुछ स्पेशलिस्ट्स ओपिनियंस :-

  1. अमेरिका के उत्तरी कैरोलिना में स्थित एक NGO – “RTI इंटरनेशनल” के सीनियर डायरेक्टर माइल्स एलेज ने कहा, कुछ भारतीय राज्य और शहरों ने ठोस कचरा निस्तारण या प्रबंधन पर ध्यान दिया है और स्कूल/कालेजों तथा संस्थानों में इस तरह के कचरा निस्तारण के लिए ट्रिक्स लगाई गई हैं, लेकिन ऐसा बड़े पैमाने पर नहीं है। एलेज ने बताया कि मासिक धर्म से संबंधित कचरे के निस्तारण के मुद्दे पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
  2. मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (MHM) एक उपेक्षित मुद्दा है और उसमें उपयोग की सामग्री का डिस्पोजल इसके संदर्भ में शायद सबसे उपेक्षित विषय है। केरल स्थित सस्टेनेबल मेन्स्ट्रएशन केरल कलेक्टिव NGO की सक्रिय कार्यकर्ता श्रद्धा श्रीजया बायो-डिग्रेडेबल और टॉक्सिन फ्री सैनिटरी उत्पाद का प्रचार करती हैं। उनका यह मानना है कि भारत सैनिटरी कचरे के निपटारे में बहुत पीछे है और उन्होंने नए नियमों को बहुत कमजोर बताया।
  3. जल क्षेत्रों में साफ-सफाई और स्वच्छता संबंधी काम करने वाली अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी वाटरऐड इंडिया में नीति – प्रबंधक (स्वास्थ्य व पोषण में सफाई, विद्यालयों में सफाई) अरुंधती मुरलीधरन का कहना है कि भारत में बहुत बड़ी मात्रा में मासिक धर्म अपशिष्ट निकलता है और भारत सरकार इसके प्रबंधन के बारे में सोच रही है। उन्होंने आगे बताया कि अगर हम इस मुद्दे से निपटना शुरू नहीं करते हैं, तो हमारे पास बहुत सारा नॉन-बायोडिग्रेडेबल (नष्ट न होने योग्य) कचरा जमा हो जाएगा, जिसे नष्ट करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे। एक सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में करीब 33.6 करोड़ लड़कियां और महिलाएं मासिक धर्म से गुजरती हैं, जिसका मतलब है कि उनमें से करीब 12.1 करोड़ डिस्पोजेबल सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।
  4. पर्यावरण के समर्थक दोबारा इस्तेमाल में लाए जा सकने वाले कपड़े के पैड, बायोडिग्रेडेबल पैड और कप सहित पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी पैड के इस्तेमाल पर जोर दे रहे हैं। शी कप कंपनी के सह-संस्थापक मनीष मलानी के मुताबिक, उन्हें गर्दन के कैंसर से ग्रस्त मरीजों के लिए नैदानिक किट की तलाश के दौरान मासिक धर्म संबंधी कप के बारे में पता चला। उन्होंने कहा अच्छा मासिक धर्म स्वच्छता पद्धति शरीर को स्वस्थ रखता है, जिससे संक्रमण या बीमारी होने की कम संभावना होती है। एलेज ने बताया कि वे कचरा के निस्तारण संबंधी प्रणाली को डिजाइन करने पर काम कर रहे हैं। अगले पेज पर पढ़ें – तस्वीर का दूसरा पहलू :

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