बिन ब्याही मां बनने पर खतरनाक सजा, ऐसा था यहां का रिवाज
भारत में नारी को देवी का दर्जा दिया जाता है लेकिन वहीं नारी जब बिन ब्याही मां बन जाती है तो उसे समाज से अलग कर दिया जाता है या समाज से अलग समझा जाता है। उसके प्रति सबका नजरिया बदल जाता है। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि कई देशों में होता है। भारत में इसके लिए कोई सजा नहीं है और ये कोई जुर्म भी नहीं है लेकिन हम आपको एक जगह बताने जा रहे हैं जहां पर कुंवारी मां बनने पर महिलाओं को खतरनाक सजा दी जाती थी।
दुनिया में कितनी ही जगह है जहां महिलाएं अभी भी अपने अधिकारों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रही है। युगांडा में सालों पहले कुछ ऐसी प्रथा थी जो महिलाओं के लिए काफी ज़्यादा डरावनी और दर्दनाक होती थी। यहां पर अविवाहित लड़की अगर प्रेग्नेंट हो जाती थी तो उन्हें मरने के लिए एक वीराने टापू पर छोड़ दिया जाता था। इस टापू को अकाम्पीन यानि ‘पनिशमेंट लैंड’ कहा जाता हैं।
इस सजा से कई महिलाओं की ज़िन्दगी तो चली गई लेकिन बचने के लिए सिर्फ एक रास्ता था। ये रास्ता कुछ किस्मत वाली महिलाओं को ही मिल पाता था। बीबीसी पर छपी ख़बर के अनुसार जिन्हें वीरान टापू पर छोड़ा जाता था यदि कोई उन्हें अपनाना चाहता है तो वो जाकर उस लड़की को वापस ला सकता है और उसके साथ शादी कर सकता है।
इस वीरान टापू पर छोड़ी गई लड़कियों में से एक हैं माउदा कितारागाबिर्वे हैं। बीबीसी द्वारा लिए गए इंटरव्यू के अनुसार इनकी उम्र जब 12 साल की थी तब ये गर्भवती हुई थी और तभी इन्हें एक टापू पर छोड़ दिया गया था। वो बताती है कि ‘‘जब मेरे परिवार को पता चला तो वो मुझे नाव में बिठाकर अकाम्पीन ले गए। मैने वहां बिना भोजन और पानी के चार रातें बिताई।
उनके अनुसार जब उन्हें वहां छोड़ा गया था तब वहां बहुत ठंड थी उनका मौत लगभग तय थी। लेकिन पांचवे दिन वहां एक मछुआरा पहुंच गया। वो उन्हें अपने घर ले गया। पहले तो उन्हें संदेह हुआ लेकिन मछुआरे ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वो उन्हें अपनी पत्नी की तरह रखेगा। वो इस पनिशमेंट लैंड से सटे लेक बुनयोन्यी से नाव से 10 मिनट की दूरी पर रहती है।
दरअसल बैकिगा समाज की इस परंपरा के अनुसार, लड़की शादी के बाद ही प्रेग्नेंट हो सकती थी। कुंवारी लड़की की शादी के एवज में मवेशियों के रूप में दहेज मिला है। अविवाहित गर्भवती लड़की को परिवार के लिए सिर्फ शर्मिन्दगी का कारण ही नहीं माना जाता था बल्कि आर्थिक फायदे के छिन जाने के रूप में भी देखा जाता था।
इसलिए परिवार के लोग उसे मरने के लिए टापू पर छोड़ जाते थे। ये रिवाज 19वीं शताब्दी में मिशनरी और उपनिवेशवादियों के पहुंचने से पहले तक चलता रहा और तब बंद हुआ जब इन्हें गैरकानूनी बना दिया गया। उस दौरान अधिकांश लड़कियां तैरना नहीं जानती थी इसलिए ऐसी लड़कियों के सामने दो रास्ते बचते थे, एक तो पानी में कूद कर मर जाए या ठंड और भूख से मर जाए।
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