आप यदि किसी रेस्टोरेंट या कैफे में जाते हैं, तो आपको अपना बिल खुद ही पे करना होता है। लेकिन अहमदाबाद में एक ऐसा कैफे शुरू हुआ है, जहां आपको अपना बिल नहीं पे करना होगा। बल्कि आपका बिल आपसे पहले आया हुआ कस्टमर पे करेगा। वहीं फिर बाद में आपको अगले कस्टमर का बिल भरना होगा, वो भी नि:स्वार्थ भाव से। दरअसल, आज व्यक्ति दूसरों के लिए कम और अपने बारे में ही सोचता है। यदि किसी के लिए कुछ किया भी तो उम्मीद भी करता है कि उसे वैसा ही रिस्पांस मिले। लेकिन अहमबाद में शुरू हुआ एक “सेवा कैफे” लोगों को ये मॉरल वैल्यूज सिखाने की कोशिश कर रहा है। यही वजह है कि इस कैफे में अगर आप कुछ भी ऑर्डर करते हैं, तो उसका बिल आपको नहीं भरना पड़ेगा। बल्कि जो कस्टमर आपसे पहले उस टेबल से उठकर गया है, वो आपका बिल पे कर चुका होगा। इस कैफे का मकसद ही है लोगों में नि:स्वार्थ भाव या बिना किसी उम्मीद के दूसरी की सेवा करवाना।
नफरत , आतंक और हिंसा से भरी इस दुनिया में अहमदाबाद का सेवा कैफे आशा की एक छोटी सी किरण है। ये कैफे न केवल पौष्टिक भोजन सर्व करता है बल्कि उम्मीदों के बिना देने का भी सबक सिखाता है।
स्कूल ऑफ सर्विस जिसे कहते हैं, आपको इस कैफे में खाने के अंत तक बिल नहीं मिलेगा, क्योंकि ये ग्राहक पहले ही चुका चुका है, जो आपके सामने खा गया था। आपसे ये उम्मीद की जाएगी कि इस तरह के मैसेज जारी रखें और योगदान करें।
ये कैफे जॉन सिलीफंत और जयेश पटेल की दिमाग की उपज है, जिन्होंने एक गैर सरकारी संगठन मानव साधना की स्थापना की थी। मूल रूप से देखने में ये एक सामाजिक प्रयोग है कि क्या होगा यदि कोई व्यवसाय सेवा या सेवा मूल के विचार पर पूरी तरह चलता है। इसमें लोग स्वेच्छा से भाग लेते हैं या नहीं।
सेवा की भावना से प्रेरित होकर ये कैफे अन्य लोगों के बीच और ज्यादा चिंतन करने का इरादा रखता है। ये रेस्टोरेंट सेवा की भावना को मुख्यधारा में लाने में और हर किसी को देने के एक मंडल में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने का एक प्रयोग मात्र है।
यहां स्वयंसेवक अपने समय को मुफ्त में समर्पित करते हैं और खाना तो बहुत प्यार और देखभाल से परोसा जाता है। । कहने की जरूरत नहीं, ये कैफे एक आदर्श वातावरण में बसा हुआ है। जहां पर न केवल अनुभव हो सकता है, बल्कि देने की खुशी भी सीख सकते हैं। ये कैफे मानवता और दया की खेती कर एक सराहनीय काम कर रहा है।