देश की पहली महिला मर्चेंट नेवी
नई दिल्ली। अक्सर जोखिम भरे कामों से महिलाओं को दूर रखा जाता है। उन्हें ऐसे काम दिए जाते हैं जो करने में आसान हो। लेकिन सुनेहा गडपांडे पहली ऐसी महिला हैं जिन्हें मर्चेंट नेवी में पहली पोस्टिंग तेलवाहक जहाज पर मिली। कई बार इन्हें इस स्थान पर पहुंचने के लिए रोका गया लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और लगातार मेहनत करती रही। सुनेहा गडपांडे राष्ट्रपति की ओर से 100 वुमन अचीवर्स में भी शामिल हो चुकी हैं।
सुनेहा का बचपन
सुनेहा गडपांडे भोपाल की रहने वाली हैं बचपन से ही पिता और भाई को काम करते हुए देखती थी तो उन्हीं के जैसे लड़कों वाले काम करना चाहती थी। बचपन में उनके ज्यादा लड़के ही दोस्त थे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते समय उन्होंने मर्चेंट नेवी के लिए आवेदन किया और उनका चयन हो गया। मर्चेंट नेवी में ट्रेनिंग के लिए जब सुनेहा का चयन हुआ तो उन्हें शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया ने 800 ट्रेनीज के बीच सुनेहा को बैच कमांडर चुना। ट्रेनिंग के दौरान लड़कियों और लड़कों में कोई अंतर नहीं किया जाता था।
ज़िद के आगे झुके अधिकारी
जब सभी की पोस्टिंग होने लगी तो अफसरों का आदेश था कि महिला अफसरों को पैसेंजरशिप पर पोस्टिंग दी जाए, क्योंकि उनका मानना था कि सी-शिप में खतरे और चुनौतियां होती हैं, जिन्हें महिलाएं नहीं झेल सकती। लेकिन सुनेहा पैसेंजरशिप में काम करने को बिल्कुल तैयार नहीं हुई। उनकी इस जिद के कारण पूरे बैच की पोस्टिंग रोक दी गई। आखिरकार उनकी ज़िद के आगे अधिकारियों को झुकना पड़ा और सुनेहा को पहली पोस्टिंग तेलवाहक जहाज़ पर दी गई।
चीफ अफसर ने की उनकी पोस्टिंग की खिलाफत
जब उनकी पोस्टिंग सी -शिप में हुई तो शिप के चीफ अफसर इस बात से खुश नहीं थे। यहां तक की उन्होंने हेडक्वार्टर को लैटर तक लिख डाला कि एक महिला अफसर के कारण बाकी स्टाफ को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें निकालने के लिए उन पर आरोप लगाए गए तथा हर संभव कोशिश की गई कि वह निकल जाएं कई बार तो उन्हें भी लगा कि उन्हें यहां से चले जाना चाहिए लेकिन वह यह सोच कर रूक गई कि अगर वह यह सब छोड़ कर चली गई तो फिर कोई लड़की यहां नहीं आ पाएगी। सुनेहा जिस जहाज पर थीं, उसमें दो से तीन लाख टन तक तेल का ट्रांसपोर्टेशन किया जाता था। वे शिप को नेविगेट करती थी, टैंकर को लोड और अनलोड करतीं थी तथा डेक पर लगातार बारह से अठारह घंटों तक पुरुषों के साथ बराबरी से काम भी करती थी। शिप पर वे अकेली महिला थीं, और उनके लिए वहां कोई इमरजेंसी फैसिलिटी नहीं थी। जितने भी नियम थे वह केवल पुरुषों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। जहाज़ एक बार समंदर में उतरता तो लगातार एक से चार महीनों तक पानी में ही रहता था। घर और परिवार से किसी भी तरह का सम्पर्क केवल सैटेलाइट फोन द्वारा ही किया जा सकता था।
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