रेपो रेट में नहीं की आरबीआई ने कमी, कैश लिमिट पर दी जनता को राहत
नोटबंदी के बाद से बैंकों में डिपॉजिट बड़ी मात्रा में हुआ है। इसके साथ ही क्रेडिट ग्रोथ कम हुई है। इसी को देखते हुए उम्मीद की जा रही थी कि लोन सस्ते होंगे। बैंक भी आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी का रास्ता देख रहे थे। हाल ही में आरबीआई ने अपनी नई मॉनिटरी पॉलिसी जारी की है जिसके अनुसार आरबीआई ने अपनी पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं किए है हालांकि गर्वनर उर्जित पटेल ने कहा है कि भविष्य में इसके रेपो रेट 1.75 पर्सेन्ट तक कम हो सकते है।
कैश निकालने की लिमिट हटेगी
मॉनिटरी पॉलिसी में डिप्टी गर्वनर गांधी ने बताया कि सेविंग अकाउंट से पैसे निकालने की लिमिट 28 फरवरी से 50000 रूपए हर हफ्ते होगी। ये लिमिट 30 मार्च तक रहेगी। इसके बाद सभी बैंकों से ये लिमिट हटा ली जाएगी। यानि 30 मार्च के बाद सभी बैंकों के सेविंग अकाउंट से पैसे निकालने की लिमिट को हटा लिया जाएगा।
क्या होता है रेपो रेट
रेपो रेट उस रेट को कहते है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक देश के सभी नेशनलाइज बैंकों को लोन देते है। आम भाषा में हम ये कह सकते है कि जिस तरह हम बैंक से लोन लेते है और उसके लिए हमे बैंकों को इंट्रेस्ट देना होता है, इंट्रेस्ट एक ख़ास दर पर होता है ठीक उसी तरह बैंकों को आरबीआई लोन देता है जिसका इंट्रेस्ट रेट रेपो रेट कहलाता है।
रेपो रेट से ये होगा परिणाम
यहां हम आपको बता दें कि अगर आरबीआई रेपो रेट को बढ़ाती है तो हमे मिलने वाले लोन महंगे हो जाते है मतलब उन पर इंट्रेस्ट रेट ज़्यादा हो जाता है और अगर आरबीआई रेपो रेट कम कर देती है तो लोन पर इंट्रेस्ट कम हो जाता है। हमे मिलने वाले लोन का इंट्रेस्ट रेट आरबीआई के रेपो रेट पर ही निर्भर हेता है।
नोटबंदी के बाद बैंकों में बढ़ा कैश
25 जनवरी 2016 को सरकार ने बताया क नोटबंदी के बाद से 25 जनवरी तक जनधन खातों में जमा राशि 64,914 करोड़ रूपए हो गई थी। वहीं अन्य खातो में भी करोड़ों रूपए जमा हुए ऐसे में बैंकों के पास भारी मात्रा में कैश जमा हुआ है। नोटबंदी के असर से बैंकों के पास कैश तो आ गया लेकिन लोन लेने वालों की संख्या घट गई है। ऐसे में अब रेपो रेट कम करने के कारण बैंक अब लोन को सस्ते करेंगे।
- - Advertisement - -