अंतराष्ट्रीय महिला दिवस का माहौल हमारे चारो तरफ चल रहा है। लोग बाल्टी भर-भर के अपने जानने पहचानने वाली महिलाओं को महिला दिवस की शुभकामनाएं दे रहे होंगे। उनकी तारीफ में कुछ शब्द भी कह रहे होंगे। कुछ लोग मैसेज में अपनी बात बयां कर रहे होंगे तो कुछ लोग चैट पर अपनी भावनाओं को रख रहे होंगे।
ज़िन्दगी किसी की भी हो महिलाओं का महत्व सभी की ज़िन्दगी में होता है। किसी भी इंसान के इस दुनिया में आने का जरिया भी एक महिला ही होती है। एक महिला मां के रूप में एक बच्चे को जन्म देती है और उसे दुनिया की नज़रों में एक बेहतर इंसान बनाती है। किसी भी इंसान की ज़िन्दगी में एक महिला का महत्व न हो ऐसा होना नामुमकिन है।
महिला दिवस पर अक्सर लोग महिलाओं को समानता देने और उनकी सुरक्षा को लेकर तमाम तरह के वादे और बाते करते है। कई जगह इसके लिए संगोष्ठियां आयोजित की जाती है तो कई नेता इस पर खुद अपने निजी विचार रखते है। महिलाओं के हक को लेकर तो तमाम लोग अपनी-अपनी बाते रखते है लेकिन हाल ही में आई दो रिपोर्ट कुछ और ही आइना दिखाती है।
हाल ही में एक रिपोर्ट में सामने आया है कि महानगरों में काम करने वाली 70 फीसदी महिलाएं एक घंटे का सफर तय करने के बाद अपने ऑफिस पहुंच कर आठ से दस घंटे काम करती है। ये महिलाएं 30 किमी की दूसरी तय करने के बाद अपने ऑफिस पहुंचती हैं। कामकाजी ज़िन्दगी और निजी ज़िन्दगी के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश में महानगरों की सड़कों को नापती ये महिलाएं अक्सर अपने ही स्वास्थ्य को दांव पर लगा देती हैं।
पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक सफर में इतना लंबा समय गंवाने के बावजूद 64 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं ने अपने काम के प्रति पूर्ण या सामान्य संतुष्टि जताई। रिपोर्ट से यह बात भी सामने आयी है कि ऑफिस के काम के दबाव के बावजूद 84 फीसदी महिलाएं हर दिन अपने दो से चार घंटे घरेलू कामकाज पर देती है।
इस रिपोर्ट में अधिकतर महिलाओं का कहना है कि उन्हें घर के कामकाज में परिवार के अन्य सदस्यों से कोई मदद नहीं मिलती है, जिससे यह पता चलता है कि अब भी समाज में यही धारणा है कि घर संभालने की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की हैं। करीब 49 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि उन्होंने घर के काम के लिए किसी को काम पर रखा हुआ है।
वहीं दूसरी ओर एक और रिपोर्ट में एक बात सामने आई है जिसके अनुसार महिलाओं को आज भी पुरूषों की तुलना में कम वेतन प्राप्त करती है। एक ऑनलाइन नौकरी एंव नियुक्ति समाधान प्रदाता कंपनी मॉन्स्टर इंडिया ने एक सर्वे में ये बताया है कि वेतन निर्धारण में अब भी पुरूषों का ही बोलबाला है।
इस सर्वे में दो हजार से अधिक कामकाजी महिलाओं ने भाग लिया था। इसमें पता चला कि पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं का वेतन 25 फीसदी कम है। साल 2016 में पुरूषों की औसत प्रतिघंटा कमाई 345.80 रूपए थी, वही महिलाओं की कमाई महज 259.80 रूपए थी। यह अंतर 2015 के 27.2 प्रतिशत से कम है लेकिन साल 2014के 24.1 प्रतिशत से ज़्यादा था।
हालांकि इसके बावजूद 53.9 प्रतिशत महिलाएं संतुष्ट से लेकर आंशिक तौर पर संतुष्ट दिखती है। उनका मानना है कि उनके लिए और ज़्यादा अवसर होने चाहिए। ज़्यादा समावेशी वातावरण तैयार करने के लिए समान वेतन और नए प्रस्तावों पर चर्चाओं के बावजूद 62.4 प्रतिशत महिलाओं का सोचना है कि उनके समकक्ष पुरूषों को पदोन्नति के ज़्यादा अवसर उपलब्ध है।