‘एक चादर मैली सी’ के राइटर ‘राजेन्द्र सिंह बेदी’ को जन्मदिन मुबारक
आपको बिमल रॉय की दिलीप कुमार वाली देवदास तो याद होगी ही और याद होंगे उसके दिल को गहरे तक छू जाने वाले डायलॉग्स भी। मगर क्या आप उन डायलॉग्स के राइटर को जानते हैं? वह राइटर थे राजेन्द्र सिंह बेदी। उन्होंने देवदास के साथ-साथ ऋषिकेश मुखर्जी की मर्मस्पशी फिल्मों के भी डायलॉग्स लिखे। आज उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य पर आइए उनके जीवन को करीब से जानते हैं। राजेन्द्र सिंह बेदी बेहद उम्दा लेखकों में से एक थे। उनका नाम प्रगतिशील लेखक आंदोलन के साथ भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने उर्दू के साथ-साथ हिन्दी में भी खूब लिखा। राजेन्द्र ने पहले कहानियां, नाटक और फ़िर हिन्दी सिनेमा में पटकथा एवं डायलॉग्स भी लिखे और साथ ही फिल्मों का निर्देशन और निर्माण भी किया। बतौर लेखक उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी और बिमल रॉय जैसे डायरेक्टरों के साथ काम किया और आभिमान, अनुपमा, सत्यकाम, मधुमती जैसी फिल्मों में डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले लिखा। एक डायरेक्टर के तौर पर संजीव कुमार और रेहाना सुल्तान को ले कर बनाई फिल्म ‘दस्तक’ ने आलोचकों से खुब तारीफें बटोरी। राजेन्द्र की फिल्में भले ही बॉक्स ऑफिस पर अपना निशान नहीं छोड़ पाईं मगर उनकी फिल्में सच्ची ज़रूर होती थीं।
राजेन्द्र का जन्म 1 सितम्बर 1915, यानी सालों पहले इसी दिन सिआलकोट (पाकिस्तानी पंजाब) के दल्लीकी जिले में हुआ था। उन्होंने अपने पढ़ाई के दिन लाहौर की गलियों में उर्दू पढ़ते-लिखते हुए बिताए। हांलाकि वे कभी कॉलेज नहीं गए। उनका पहला लघु कथाओं का संग्रह ‘दान-ओ-दाम’ 1940 में प्रकाशित हुआ जिसमें उनकी बहुचर्चित कहानी ‘ग़रम कोट’ भी थी। उनका अगला संग्रह ‘ग्रहण’ 1942 में प्रकाशित हुआ। 1943 में राजेन्द्र ने लाहौर के एक छोटे से स्टूडियो में काम किया मगर फिर उन्होंने अपना रूख जम्मू में ऑल इंडिया रेडियो की ओर कर लिया और चार सालों तक वहीं काम करते रहे। कुछ ही सालों में वे जम्मू-कश्मीर ब्रॉडकास्टिंग यूनिट के हेड बन गए। इस दौरान उनकी कई किताबें प्रकाशित हुईं जिन्हे बहुत सराहा भी गया। उनकी किताब ‘एक चादर मैली सी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया।
1947 में बंटवारे के बाद वे भारत आ गए और ‘बड़ी बहन’ फिल्म के साथ उनके फिल्मी सफ़र की शुरूआत हुई। उन्होंने अमर कुमार और बलराज सहानी के साथ मिल कर एक कंपनी ‘सिने को-ऑपरेटिव’ बनाई और अपनी पहली फिल्म गरम कोट का निर्माण किया। उनकी अगली फिल्म ‘रंगोली’ 1962 में आई, दोनों ही फिल्मों को अमर कुमार ने डायरेक्ट किया था। फिर उन्होंने बिमल रॉय की कालजयी फिल्म ‘देवदास’ के लिए हर किसी पर अपनी छाप छोड़ने वाले डायलॉग्स लिखे। उन्होंने उस दौर के हर बड़े डायरेक्टर के साथ काम किया। 1970 में आखिर उनका सपना पूरा हुआ और उन्होंने अपनी पहली फिल्म डायरेक्ट की, फिल्म थी हिन्दी सिनेमा में क्लासिक कही जाने वाली ‘दस्तक’। दस्तक उन फिल्मों में से है जिनकी कहानी को चाहे पढ़ा जाये या देखा जाये वे एक गहरा असर पाठक और दर्शक पर छोड़ ही जाती है। उसके बाद राजेन्द्र ने फ़ागुन, नवाब साहब, आंखन देखीं जैसी फिल्में बनाईं।
उनको मधुमती और सत्यकाम के लिए बेस्ट डायलॉग राइटर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। उन्होंने अपनी कहानियों में बंटवारे के दुख-दर्द को बड़ी मार्मिकता से दर्शाया। उनके उपन्यास ‘एक चादर मैली सी’ और ‘मुठ्ठी भर चावल’ के उपर भी फिल्म बनीं। 1982 में उन्हें पैरालिसिस का अटैक आया और दुर्भाग्यवश दो साल बाद 1984 में राजेन्द्र चल बसे। उनकी याद में पंजाब सरकार ने उनके नाम पर ‘राजेन्द्र सिंह बेदी अवार्ड’ की शुरूआत की। साहित्य और सिनेमा में उनके योगदान को भुलाया जाना असंभव है। उनकी किताबों और फिल्मों से वे हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगे।