यहां होती है दुर्योधन की पूजा, कर्ण को मानते है दान का देवता
हम लोग अक्सर देखते है कि फिल्मों में आखिर में हीरो की ही जीत होती है और विलेन हार जाता है। हमेशा से सब ये ही सिखाते आएं है कि अच्छे कर्म वाले इंसान को ही हमेशा याद रखा जाता है। बुरे काम करने वालों को कोई नहीं पूंछता। लेकिन ये बात कहीं-कहीं पर गलत भी साबित होती हुई नजर आती है। रामायण के मुख्य विलेन यानी रामायण के खलनायक रावण भी बुरे कर्मो के कारण रामायण के विलेन बने। लेकिन अंत में उनकी मौत और भगवान श्रीराम की जीत हो गई। भारत में ऐसी कई जगह है जहां पर लोग रावण की ही पूजा करते हैं। लेकिन यहां पर हम आपको रावण या रामायण की कोई कहानी नहीं बताने वाले है। यहां पर हम आपको महाभारत के मुख्य विलेन की बात बताने वाले है।
महाभारत के मुख्य विलेन को तो आप सभी जानते है। महाभारत के मुख्य विलेन दुर्योधन को अगर महाभारत में देखा जाएं तो उन्होने छल-कपट के सहारे पांडवों से उनकी सत्ता छिनी और पूरी महाभारत में ये विलेन के रूप में दिखे। महाभारत के इस महाविलेन को भी भारत में पूजा जाता है। हमारा देश काफी महान है जहां पर विलेन की भी पूजा होती हैं। आपने भले ही आज तक कोई दुर्योधन और कर्ण के कोई मंदिर न देखे हो लेकिन आज हम आपको कर्ण और दुर्योधन के मंदिर में ले जाने वाले है। उत्तराखंड के सुदूर कोने में ये दोनों मंदिर वास्तव में हैं। इन दोनों मंदिरों के पीछे की भी कहानी बड़ी रोचक है।
शिव मंदिर में बदला था दुर्योधन मंदिर को
उत्तरकाशी के टोंस घाटी के नेटवर गांव में देश का एकमात्र कर्ण मंदिर हैं। ये इस गांव के वासियों के लिए भी गर्व की बात है। इस गांव से 50 किमी दूर ही कर्ण मंदिर भी हैं। कुछ सालों पहले लोगों ने इसे शिव मंदिर में बदल दिया था। लेकिन बाद में लोगों ने सोने की प्लेट लगा कर लिख दिया कि ये मंदिर ‘कौरव युवराज दुर्योधन’ का है। इस मंदिर का निर्माण लगभग नौ साल पहले ही हुआ है। इस मंदिर से जुड़े लोगों का कहना है। इससे पहले यहां पर कोई दुर्योधन का मंदिर नहीं था लेकिन नौ साल पहले गांव वालों ने निश्चय किया और मंदिर बनाय।
पूर्वजों ने शिव को मानने की दी थी सलाह
गांव के लोगों के अनुसार उनके पूर्वज भी इस मिथक को मानते आ रहे थे कि अच्छे कर्मो वाले लोगों की ही पूजा होती है और हम सबने इस मिथक को स्वीकार कर लिया था। हमारे पूर्वजों ने कौरवों ने जुड़ाव होने से भी इंकार किया। उन्होने बस भगवान शिव की पूजा करने के लिए हमसे कहा। पर नौ साल पहले गांववालों ने मंदिर बनाने का निश्चय किया। उनका मानना था कि ’उनका महाभारत के इस करैक्टर से कोई मानसिक जुड़ाव है और लोग बेवजह ही उसे बुरा मानते आ रहे हैं।’
कर्ण मंदिर में होते है धार्मिक कार्य
अपने कवज और कुंडल को दान कर देने वाले कर्ण का मंदिर भी इस गांव से 50 किमी दूरी पर ही है। अपने दान के कारण प्रसिद्ध कर्ण के मंदिर में भी लोग श्रद्धापूर्वक दानकर्म करते है। यहां पर लोग धार्मिक कार्यो, अनुष्ठानों और दान पुण्य करने आते है। गांव के प्रधान मनमोहन प्रसाद नौटियाल ने कहा कि कर्ण हमारे आदर्श हैं। हम उनसे प्रेरणा लेकर दान करके एक-दूसरे का सहयोग करते हैं और धार्मिक कार्यों में सहयोग करते हैं। उनकी प्रेरणा से ही गांव में दहेज़ पर रोक लगा दी गयी है और बलि को वर्जित कर दिया गया है।