अब आयुर्वेद से होगा कैंसर का इलाज, वैज्ञानिकों ने खोजी आयुर्वेदिक दवाई
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किसी भी देश को आगे बढ़ाने में वहां कि टेक्नोलॉजी का काफी अहम योगदान होता है। टेक्नोलॉजी जो लोगों के काम को आसान बनाती है साथ ही उनके जीने के तरीके में भी सुधार लाती है। टेक्नोलॉजी आपको स्वास्थ्य सुविधा देने में भी पीछे नहीं है। आजकल गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज टेक्नोलॉजी के जरिए आसानी से हो जाता है।
कैंसर आजकल एक भयानक बीमारी के रूप में जानी जाती है हालांकि इसका इलाज मौजूद है लेकिन इनके महंगे होने के कारण ये आम इंसान की पहुंच से अब भी बाहर ही है लेकिन अब कैंसर के रोगियों के लिए एक खुशखबरी है। हाल ही में भाभा आण्विक अनुसंधान केंद्र ने कैंसर रोगियों के लिए आयुर्वेदिक दवा का अविष्कार किया है, जो फेफड़ों और त्वचा के कैंसर के लिये बहुत असरकारी सिद्ध हुई है।
गोली के रूप में होगी तैयार
बार्क में जैव कार्बनिक विभाग में वैज्ञानिक डॉ वी एस पात्रो ने जानकारी दी डॉ पात्रो ने बताया कि बार्क में करीब तीन दशकों से आयुर्वेदिक औषधियों से कैंसर के उपचार को लेकर शोध चल रहा है जिसमें कैंसर को लेकर दो महत्वपूर्ण दवाओं को खोजने में सफलता हासिल हुई है। इनमें से एक दवा कीमोथैरेपी के दुष्प्र भावों एवं पीड़ा को कम करने के लिये है और दूसरी दवा रेडियोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करने के लिये। उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया में पहली बार खाने वाली गोली की शक्ल में कैंसर की औषधियां तैयार की गयीं हैं। इन सभी दवाओं की कीमत बहुत मामूली होगी।
कीमोथैरेपी के दुष्प्रभावों को करेगी समाप्त
उन्होंने बताया कि फेफड़ों एवं त्वचा के कैंसर के उपचार के लिये आमतौर पर बहुतायत में मिलने वाली झाड़ी रामपत्री से एक औषधि तैयार की गयी है जो प्रारंभिक चरण के कैंसर के मामले में कीमोथैरेपी की जरूरत को नगण्य करेगी और एडवांस स्टेज के कैंसर में कीमोथैरेपी के दुष्प्रभावों जैसे बाल झडऩा, खाने में दिक्कत होना, उल्टी होना आदि तकलीफों को बहुत हद तक समाप्त कर देगी।
प्रतिरोधक क्षमता में होगी वृद्धि
रामपत्री के हत्रारों मॉलिक्यूल्स में से कुछ मॉलिक्यूल्स बहुत उपयोगी पाये गये। बार्क की प्रयोगशाला में उन मॉलिक्यूल्स को निकाल कर औषधि बार्क कीमोथैरेपिस्टिक (बीसीटी) को विकसित किया गया है। उन्होंने बताया कि इस दवा से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है और कैंसर के उपचार की प्रभावशीलता कई गुना बढ़ जाती है। रोगी की पीड़ा भी काफी कम हो जाती है।
स्तन कैंसर में भी कारगर
डॉ. पात्रो के अनुसार दूसरी दवा बार्क रेडियो मॉडिफायर को भी एक पौधे से विकसित किया गया है। यह औषधि रेडिएशन यानी विकिरण के दुष्प्रभाव दूसरे अंगों पर पडऩे से रोकती है। उदाहरण के तौर पर स्तन कैंसर के रोगी को रेडियोथैरेपी देने से उसका फेफड़ों पर भी असर पड़ता है जिसकी जरूरत नहीं होती है। यह दवा रेडियो थेरेपी के कारण स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान से बचाती है और कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने का भी काम करती है।
उन्होंने बताया कि तीसरी दवा रेडियोधर्मी विकिरण के शरीर पर गैर नियोजित एक्सपोत्रर यानी रेडियोधर्मी दुर्घटना की स्थिति में विकिरण की चपेट में आने वालों के लिये है। बार्क रेडियोप्रोट्रेक्टर (बीआरपी) को भी हमारे आसपास पाये जाने वाले पौधों एवं झाड़यिं से बनाया गया है। यह औषधि विकिरण की चपेट में आने वाली कोशिकाओं को ठीक करती है और स्वस्थ कोशिकाओं का विस्तार करती है। उन्होंने कहा कि परमाणु दुर्घटनाओं के लिये यह औषधि अत्यंत कारगर साबित होने वाली है।
डॉ. पात्रो के अनुसार इन तीनों दवाओं के प्रीक्लीनिकल ट्रॉयल अपेक्षा से कहीं अधिक सफल रहे हैं और बहुत जल्द ही इसके क्लीनिकल ट्रायल शुरू होंगे। उम्मीद है कि 2019 के अंत तक यह दवा बात्रार में उपलब्ध हो जायेगी। बार्क में इस खोज को लेकर खासा उत्साह है। बार्क के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन दवाओं की प्रौद्योगिकी विकसित करके औषधि निर्माताओं को दी जायेगी और वे इन दवाओं का वाणिज्यिक उत्पादन करेंगे। उन्होंने कहा कि एक बार क्लीनिकल ट्रायल हो जाये, इसके बाद दुनिया भर में इन तीनों दवाओं की मांग निश्चित रूप से बढ़ेगी।
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