हाईकोर्ट की शरण लेंगे साइरस मिस्त्री
टाटा ग्रुप के चेयरमेन पद से हटाए गए साइरस मिस्त्री जल्द ही हाईकोर्ट की शरण लेने वाले हैं। बता दें कि टाटा ग्रुप के चेयरमेन पद से हटने के बाद साइरस मिस्त्री को टाटा की प्रमुख कंपनियों टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, टीसीएस, इंडियन होटल्स, टाटा ग्लोबल बेवरेजेज और टाटा पावर का चेयरमेन पद को भी छोड़ना होगा। परंपरागत रूप से, टाटा संस का चेयरमेन सभी प्रमुख समूह की कंपनियों का प्रमुख होता है। साइरस अब टाटा ग्रुप के इसी फ़ैसले का बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। वहीं दूसरी ओर अगले चार महीने के लिए रतन टाटा को कंपनी का अंतरिम चेयरमेन बनाया गया है। इन चार महीनों में ही कंपनी नए चेयरमेन की तलाश करेगी।
क्यों हटाया साइरस को
साइरस मिस्त्री को चेयरमेन पद से क्यों हटाया गया है, इस बात की जानकारी कंपनी की ओर से अभी तक नहीं दी गई है। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि मिस्त्री का परफॉर्मेस पिछले कुछ महीनों से ठीक नहीं था। इतना ही नहीं रिपोर्ट्स के अनुसार पिछले छह महीनों से साइरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच मतभेद चल रहा था। इसके साथ ही घाटे में चल रही कंपनियों को छांटने और केवल फायदा देने वाले उपक्रमों पर ही ध्यान देने से उनके दृष्टिकोण की वजह से भी कंपनी में नाराजगी का माहौल था। बता दें कि इसमें यूरोप में घाटे में चल रहे इस्पात कारोबार की बिक्री का मामला भी शामिल था।
एक समय पर भारत-ब्रिटेन के सबसे बड़े उद्योगपति माने जाते थे मिस्त्री
मिस्त्री को वर्ष 2011 में कंपनी में चेयरमैन रतन टाटा का उत्तराधिकारी चुना गया था और उन्हें पहले डिप्टी चेयरमैन बनाया गया। टाटा संस के चेयरमैन पर दर मिस्त्री का चुनाव पांच सदस्यीय एक समिति ने किया था। मिस्त्री ने रतन टाटा के 75 वर्ष की आयु पूरी करने पर उनकी सेवानिवृत्त के बाद 29 दिसंबर 2012 को चेयरमैन का पद भार संभाला था। मिस्त्री वर्ष 2006 से कंपनी के निदेशक मंडल में शामिल रहे हैं।
कंपनी के सबसे बड़े हिस्सेदार शापूरजी पालोनजी ने कंपनी के चेयरमैन पद के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी। मिस्त्री टाटा समूह के छठे अध्यक्ष थे और नोरोजी सक्लात्वाला के बाद दूसरे ऐसे अध्यक्ष, जिनके नाम में टाटा नहीं था। अर्थशास्त्रियों ने एक समय में उन्हें भारत तथा ब्रिटेन का सबसे महत्वपूर्ण उद्योगपति करार दिया था।
बता दें कि मिस्त्री ने रतन टाटा से अध्यक्ष पद की कमान ऐसे वक्त में ली थी, जब टाटा समूह की कई कंपनियों का हाल बुरा था और उनकी सबसे बड़ी चुनौती इंटरनेशनल इस्पात कारोबार को तंगहाली से निकालना और अन्य कारोबारों को एकजुट रखना था।