Tuesday, August 8th, 2017
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क्या सिर्फ 6 हजार ही है इनकी प्रतिभा की कीमत




Art & Culture

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हमारे देश की कला और संस्कृति महान है। यहां कई नृत्य कलाकार, चित्रकार आदि हुए जिन्होंने अपनी कला का परिचय पूरी दुनिया को दिया और कला संस्कृति के मामले में भारत को उच्च स्थान दिलाया। इन कलाकारों की प्रतिभा का मोल लगाना वैसे तो बहुत मुश्किल है, लेकिन क्योंकि आज हर क्षेत्र में वेतन मायने रखता है फिर चाहे वह कला का क्षेत्र ही क्यों न हो, देश के कला संस्थानों में नृत्य, चित्रकारी, एक्टिंग आदि का प्रशिक्षण दे रहे गुरूओं को वेतन दिया जा रहा है।

आप सोच सकते हैं कि सरकार द्वारा इनकी अनमोल प्रतिभा की कीमत कितनी लगाई जा रही है। मात्र 6 हजार। जी हां, महीने के छह हजार रूपए। आज जहां दुनिया कंपनियों में जॉब करके लाखों के पैकेज पा रही है, वहीं कला और संस्कृति के आर्टिस्टों को महीने की छह हजार रूपए सैलरी दी जा रही है। इतना ही नहीं इनके गुरूओं की सैलरी हर महीने मात्र 10 हजार रूपए है।

शायद लेबर मिनिस्टर ये भूल गए हैं कि एक वर्कर को हर महीने 10 हजार रूपए सैलरी मिलती है, तो ये लोग तो कलाकार हैं। सोचने वाली बात है कि इतनी कम सैलरी में ये कलाकार कैसे अपना जीवन बिताते होंगे। इस मुद्दे को लेकर कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल की एक्टर और थिएटर आर्टिस्ट अर्पिता घोष ने संसद में अर्जी लगाई थी। जिन्होंने केंद्र सरकार का ध्यान इन आर्टिस्टों की सैलरी पर दिलाया था। उन्होंने कहा था कि मिनिस्ट्री ऑफ कल्चरल परफॉर्मेंस आर्ट ग्रांट स्कीम के तहत आर्टिस्टों को मात्र 6 हजार का मासिक वेतन दिया जाता है।

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क्या वाकई सरकार देती हैं इन्हें सैलरी-

जी हां, ड्रामाटिक ग्रुप्स, थिएटर ग्रुप्स, चिल्ड्रन थिएटर, डांस ग्रुप्स को सैलरी सरकार द्वारा दी जाती है। जिसमें गुरूओं की सैलरी 10 हजार और शिष्यों व आर्टिस्ट की सैलरी मात्र 6 हजार होती  है।

दो सालों से नहीं मिली सैलरी-

बता दें कि इस ग्रांट के तहत देश के करीब 50 हजार आर्टिस्ट रजिस्टर्ड हैं। ये आर्टिस्ट भारत के विभिन्न जगहों पर पोस्टेड किए जाते हैं। ये अपनी पूरी जिन्दगी कला को दे देते हैं और बदले में इन्हें क्या मिलता है। कई कलाकार तो ऐसे हैं जिन्हें 2015 के बाद से सैलरी भी नहीं मिली। बीजेपी की सरकार आने के बाद भी इन आर्टिस्टों पर सरकार का ध्यान नहीं गया है और आज भी स्थिति जस की तस है।

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इसलिए अब टीवी की ओर कर रहे हैं रूख-

थिएटर डायरेक्टर देबेश चट्टोपाद्याय, जो पिछले कई सालों से 17 डांस ट्रूप कोलकाता में चला रहे हैं का कहना है कि पहले तो इन आर्टिस्टों की सैलरी बहुत कम है, जिस पर जीवन भर निर्भर नहीं रहा जा सकता । यही वजह है कि अब कई जूनियर थिएटर आर्टिस्ट टीवी सीरियल्स की ओर रूख कर रहे हैं। वह कहते हैं ग्रांट का मतलब ही आर्ट को बढ़ावा देना है, सरकार कैसे इसे बढ़ावा दे रही है, यह साफ नजर आ रहा है। जाहिर तौर पर सरकार की हम आर्टिस्टों की तरफ ये अनदेखी हमारी कला को बहुत दुख पहुंचाती है।

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