उस टीम ने वर्ल्ड कप में तब तक सिर्फ़ एक मैच जीता था। उस टीम से किसी को कोई उम्मीद नहीं थी। उस टीम में कोई हीरो नहीं था। उस टीम में सीमित ओवर मैच के लिए न तो विशेषज्ञ बल्लेबाज़ था और न गेंदबाज़। फिर भी कुछ तो बात थी क्योंकि वो टीम 15 दिनों के अंदर एक इतिहास लिखने वाली थी।
बात 1983 वर्ल्ड कप की टीम की है, जिसके कप्तान थे कपिल देव रामलाल निखंज। तब वर्ल्ड कप में हिस्सा लेना भारत के लिए आौपचारिकता भर हुआ करता था। बिना किसी उम्मीद और बगैर किसी दबाव में वर्ल्ड कप खेलने गयी भारतीय टीम में एक शख़्स था, जिसकी कामयाबी एक गाथा बन गयी। उनका नाम था मोहिंदर अमरनाथ। बल्लेबाज़ तो थे ही साथ ही ज़रुरत पड़ने पर गेंदबाज़ी भी कर लेते थे।
3 विकेट चटकाकर दिलाई थी भारत को जीत
1983 के वर्ल्ड कप में मेलकम मार्शल, जोएल गार्नर, माइकल होल्डिंग और एंडी रॉबर्ट्स जैसे तेज गेंदबाजों से सजी कैरेबियाई टीम के खिलाफ पहले बल्लेबाजी करने उतरी टीम इंडिया की नैया के. श्रीकांत (38) और मोहिंदर अमरनाथ (26) ने पार लगाई। 24 सितंबर, 1950 को जन्में मोहिंदर ने 26 रन बनाने के बाद 3 विकेट भी झटके थे। इस मैच में उन्हें मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला था।
बचपन से ही मिली थी क्रिकेट की शिक्षा
मोहिंदर के पापा लाला अमरनाथ एक शानदार क्रिकेटर थे। उन्हें मैदान पर जीत के अलावा कुछ और मंजूर नहीं था। लाला अमरनाथ के बेटे मोहिंदर और सुरिंदर अमरनाथ इस बात से डरते थे कि कहीं उनके पिता उनका मैच न देख लें। मैच खेलते समय कई बार बैट्समैन खराब शॉट लगाने के कारण आउट हो जाता है। गेंद तो होती है पिटने लायक, लेकिन किस्मत से गेंदबाज को विकेट मिल जाता है। मैच के दौरान यदि मोहिंदर या सुरिंदर में से कोई भी खराब गेंद पर अपनी गलती से आउट होता था तो उनके पिता लाला अमरनाथ घर पर पहुंचते ही उनकी पिटाई बेल्ट से करते थे। इसी कड़ी ट्रेनिंग ने मोहिंदर अमरनाथ को एक क्लासिक क्रिकेटर बनाया। अगली स्लाइड में पढ़िए मोहिंदर से जुड़े कुछ इंटरेस्टिंग फैक्ट्स…