बड़े ही विस्तार से भारतीय संगीत की व्याख्या करते हुए इस कला के बारे में पीएम नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि यह देश और समाज को जोड़ने वाला है, साथ ही उन्होंने इस अनमोल सांस्कृतिक विरासत को युवा पीढ़ी के बीच बचाए रखने का आह्वान किया है। मोदी ने आज स्पिक मैके के 40 वर्ष पूरे होने के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह का उद्घाटन करते हुए ये कथन कहे।
संगीत का संदेश – ‘एक साथ रहो’
उन्होंने एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये IIT दिल्ली के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संगीत, चाहे वह लोक संगीत हो, शास्त्रीय संगीत हो या फिर फिल्मी संगीत ही क्यों न हो, उसने हमेशा देश और समाज को जोड़ने का काम किया है। उन्होंने कहा कि धर्म-पंथ-जाति की सामाजिक दीवारों को तोड़कर सभी को एक स्वर में एकजुट होकर एक-साथ रहने का संगीत ने संदेश दिया है।
विदेशी इसलिए हैरान – ‘भारत में कितनी नृत्य शैलियां!’
उत्तर का हिन्दुस्तानी संगीत, दक्षिण का कर्नाटक संगीत, बंगाल का रवीन्द्र संगीत, असम का ज्योति संगीत, जम्मू-कश्मीर का सूफी संगीत, इन सभी की नींव हमारी गंगा-जमुनी सभ्यता है। उन्होंने कहा कि जब कोई विदेश से भारतीय संगीत और नृत्य कला को समझने, सीखने आता है तो ये जानकर हैरान रह जाता है कि हमारे यहां चेहरे, पैर, हाथ, सिर और शरीर की विभिन्न मुद्राओं पर आधारित कितनी ही नृत्य शैलियां हैं। ये नृत्य शैलियां भी अलग-अलग कालखंड में अलग-अलग क्षेत्रों में विकसित हुई हैं, उनकी अपनी अलग-अलग पहचान हैं।
लोकगीत की विशेषता – ‘कोई भी इसमें भाग ले सकता है’
पीएम ने भारतीय संगीत की विशेषता बताते हुए कहा कि देश मे लोक-संगीत लोगाें ने अपनी निरंतर साधना से विकसित किया है। उस समय की सामाजिक व्यवस्थाओं को, कुरीतियों को तोड़ते हुए उन्होंने अपनी शैली, प्रस्तुति का तरीका और कहानी कहने के अपने तरीके का विकास किया। लोकगायकों, नर्तकों ने स्थानीय लोगों की बातों का उपयोग करते हुए अपनी शैली का निर्माण किया। इस शैली में कठिन प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं थी और इसमें सामान्य जनता भी शामिल हो सकती थी।
वाद्य यंत्र और संगीत की विधाएं लुप्त होने की कगार पर
संस्कृति की इन बारीकियों को, और उसके विस्तार को अधिकतर लोग समझते हैं, लेकिन आज की युवा पीढ़ी में ज्यादातर को इस बारे में पता नहीं है। इसी उदासीनता की वजह से बहुत से वाद्य यंत्र और संगीत की विधाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं। बच्चों को गिटार के अलग-अलग स्वरूप तो पता हैं लेकिन सरोद और सारंगी का फर्क कम ही पता होता है। ये स्थिति ठीक नहीं है। Click Next Page