अलग पार्टी बनाकर न दिखा पाए कमाल, लौट कर बुद्धू घर को आए
बुधवार को इस बात का खुलासा हुआ कि दो महीने से सिद्धू के अगली राजनीतिक पार्टी को चुनने की कवायद चल रही थी लेकिन इस बीच उन्होंनी बीजेपी छोड़ी नहीं थी। यानी जुलाई में राज्यसभा से इस्तीफा देने के वक्त, अरविंद केजरीवाल से बातचीत के दौरान और न ही ’आवाज़ ए पंजाब’ की घोषणा के समय सिद्धू ने बीजेपी से इस्तीफा दिया था। सिद्धू ने बुधवार को बीजेपी से औपचारिक रूप से इस्तीफा दे दिया है। अब देखना ये है कि बीजेपी से अलग हुए सिद्धू नई पार्टी बनाकर क्या कमाल दिखा पाते हैं। अगर राजनीति के इतिहास पर नज़र डालें तो कई ऐसे राजनेता रहे हैं जिन्होंने पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी तो बनाई लेकिन कुछ कमाल न दिखा सके और पहली पार्टी में वापसी कर ली। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे ही कुछ राजनेताओं के बारे में…
अमर सिंह
यूपी की राजनीति में अमर-मुलायम के जोड़ी की मिसाल दी जाती थी। मुलायम सिंह यादव के काफ़ी क़रीब होने की वजह से उन्हें दूसरे नंबर का नेता माना जाता था। वर्ष 2010 में मनमुटाव के चलते पार्टी के खि़लाफ बोलने पर बाहर कर दिया गया। पार्टी से अलग होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकमंच पार्टी बनाई। पार्टी चुनाव में उतरी, लेकिन एक भी सीट हासिल न कर सकी। इसके बाद एक समय में सत्ता के केंद्र रहे अमर सिंह ने खुद को हाशिए पर जाते देख रालोद के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। लेकिन जीत न हासिल होने और लगातार हाशिए पर रहने की वजह से फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।
उमा भारती
राम मंदिर आंदोलन से राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरी उमा भारती बीजेपी में कैडर की नेता रही हैं। मध्यप्रदेश में सीएम के तौर पर सरकार का संचालन किया। वर्ष 2004 में आडवाणी से मनमुटाव के चलते उनकी आलोचना कर दी। इसके बाद पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी से बाहर होने के बाद उमा भारती ने भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया, लेकिन राजनीति के केंद्र से हाशिए पर जाते देख घर वापसी की।
बेनी प्रसाद वर्मा
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे बेनी प्रसाद वर्मा का कद 2007 के पहले मुलायम सिंह के समकक्ष माना जाता था। 2007 के चुनाव में पार्टी से बेटे को टिकट न मिलने की वजह से अलग हो गए। अलग होने के बाद इन्होंने समाजवादी क्रांति दल नामक पार्टी बनाई। पार्टी ने चुनाव भी लड़ा, लेकिन चुनाव में कोई कमाल नहीं दिखा पाने की वजह से हाशिए की तरफ जाने लगे। बाद में अस्तित्व को बचाने के लिए कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद यूपीए टू में मंत्री भी बने, लेकिन पार्टी में लंबी दौड़ में पिछड़ने की वजह से फिर से सपा में शामिल हो गए।