Sunday, August 6th, 2017
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मुस्कुराना तो डॉक्टरों की मजबूरी है असली बात इस रिपोर्ट में पढ़ें




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कहा जाता है कि अगर डॉक्टर मरीज से हंसकर-मुस्कुराकर ट्रीटमेंट करें, तो मरीज की आधी बीमारी वैसे ही ठीक हो जाती है। यही वजह है कि मरीज को ट्रीटमेंट देते समय डॉक्टर्स हमेशा मुस्कुराते रहते हैं। बिजी शेड्यूल में थकान के बाद भी मुस्कुराना तो उनकी मजबूरी है, लेकिन असल में ये डॉक्टर्स कितने तनाव में होते हैं, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। हाल ही में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की आई एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 82.7 प्रतिशत डॉक्टर्स अपने काम को लेकर भारी तनाव में रहते हैं। एक ओर जहां, 46.3 प्रतिशत डॉक्टरों को हिंसा के कारण तनाव रहता है, वहीं 24.2 प्रतिशत को मुकदमे का डर सताता है। 13.7 प्रतिशत डॉक्टरों को आपराधिक मामला चलाए जाने से चिंता बनी रहती है।

यह सर्वे चिकित्सा जगत में कठिनाइयों को लेकर कराया गया था, जिसमें सबसे चिंताजनक बात डॉक्टरों पर होने वाले हमलों और आपराधिक मामले दर्ज कराने को लेकर है। इस मामले में डॉक्टरों की चिंता को इसी बात से समझा जा सकता है कि 56 प्रतिशत डॉक्टर हफ्ते में कई दिनों तक सात घंटे की सामान्य नींद भी नहीं ले पाते हैं।

सर्वे करीब 15 दिनों में ऑनलाइन तरीके से कराया गया, जिसमें 1681 डॉक्टरों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज कराई हैं। इनमें निजी ओपीडी, नर्सिग होम्स, कॉर्पोरेट अस्पतालों या सरकारी अस्पतालों में कार्यरत जनरल प्रैक्टिशनर, चिकित्सक, स्त्री रोग विशेषज्ञ और अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं।

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यह आंखें खोल देने वाला सर्वे है, जो डॉक्टरों की मौजूदा हालत को दर्शाता है। सर्वे में भाग लेने वाले करीब 62.8 प्रतिशत डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें अपने मरीजों को देखते समय हर वक्त हिंसा का भय सताता है, जबकि 57.7 प्रतिशत को लगता है कि उन्हें अपने परिसर में सुरक्षा कर्मियों को नियुक्त कर लेना चाहिए। आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, ‘मेडिकल प्रोफेशन एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है और इसकी गरिमा दांव पर लगी है। आज इसे अन्य पेशों की तरह ही समझा जाता है। सर्वे से ज्ञात हुआ है कि डॉक्टर अपने काम से खुश नहीं हैं और ज्यादा चिंता इस बात को लेकर रहती है कि मरीजों का उन पर पहले जैसा भरोसा नहीं रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘डॉक्टरों के मन में हर वक्त भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक हमलों का भय छाया रहता है। सर्वे में भाग लेने वाले आधे से अधिक डॉक्टरों ने माना कि उन्हें निरंतर चिंता बनी रहती है। इनमें से कुछ तो बिल्कुल नहीं चाहते कि उनके बच्चे भी इस पेशे को अपनाएं। अधिकांश डॉक्टरों का मत था कि उन्होंने चिकित्सा का पेशा इसलिए चुना, क्योंकि उन्हें यह व्यवसाय आदर्श लगता था, हालांकि अब यह पहले जैसा आदर्श काम नहीं रहा।’

यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि अधिकांश डॉक्टरों को रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत है। करीब 76.3 प्रतिशत डॉक्टरों को चिंतित रहने की शिकायत है। आईएमए के एक पूर्व अखिल भारतीय अध्ययन के अनुसार, डॉक्टरों पर सबसे अधिक हमले आपातकालीन सेवाएं देते समय होते हैं, जिनमें से 48.8 प्रतिशत घटनाएं आईसीयू में ड्यूटी के दौरान हुई हैं या फिर तब जब मरीज की सर्जरी हो रही थी।

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डॉ. अग्रवाल ने बताया, ‘डॉक्टर्स डे के अवसर पर, यह आवश्यक है कि लोगों को बताया जाए कि डॉक्टरों की इस चिंता और तनाव से मरीजों के लिए परेशानी हो सकती है। डॉक्टर नाखुश रहेंगे तो मरीज कैसे खुश रह सकते हैं। मुकदमों के डर और पेशे में स्वतंत्रता की कमी की वजह से कई डॉक्टर दबाव में रहते हैं। इस सर्वे से तो यही जाहिर होता है।’

सर्वे से ज्ञात हुआ कि मरीजों को उम्मीद होती है कि डॉक्टर उनसे अच्छे से पेश आएंगे। करीब 90 प्रतिशत मरीज चाहते हैं कि डॉक्टर पहले अपना परिचय दें, मरीज को पहचानें, उसकी बात को ध्यान से सुनें, पूरी जानकारी ठीक से दें। करीब 40 प्रतिशत मरीजों ने कहा कि वे डॉक्टर से यह भी उम्मीद करते हैं कि वे इलाज का अवसर देने के लिए मरीज को धन्यवाद दें। वहीं डॉक्टरों को भी सावधान रहने की जरूरत है। मरीज से ठीक से बात कीजिए, ध्यान से उसकी बात सुनिए, इलाज के बारे में समझाइए और मुस्कराते हुए मरीज का शुक्रिया भी अदा कीजिए।

 

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