मंदिरों में आपने देखा होगा कि सुबह-शाम नियम से आरती होती हैं। आरती करने के दौरान आपने ये भी देखा होगा कि अलग-अलग तरीके के दीपक और चीज़ों का प्रयोग किया जाता है। हम आमतौर पर कपूर जलाकर आरती कर देते हैं लेकिन आरती करने के भी अपने नियम होते हैं जिनके शास्त्रों की दृष्टि से फायदे मिलते हैं। यहां हम आपको उन्हें फायदों के बारे में बताने वाले हैं।
पूजा में आरती का महत्व क्या है?
जब भी पूजा करते हैं तो आरती क्यों करते हैं? ये सवाल अक्सर मन में आता है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि अगर पूजन के दौरान कोई गलती हो जाती है तो उसकी क्षमा के लिए भगवान की आरती की जाती है। ज्यादातर लोग आरती करने की भी सही नियम नहीं जानते। इसलिए पूजा के दौरान की गईं गलतियां और नियमों का पालन किए बिना की गई आरती उन्हें अच्छे की बजाय बुरे फल देते हैं।
मंत्रों का उच्चारण
आरती करने के दौरान वैसे तो आरती गई जाती है लेकिन उससे पहले मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। आरती को “आरार्तिक’ या “नीरंजन” भी कहा जाता है। आरती के दौरान अगर मंत्रों का उच्चारण किया जाए, तो यह और भी अच्छा है लेकिन अगर ना भी करें तो शुद्ध मन से दीपक या कपूर के साथ की गई आरती भी मनोकामना सिद्ध कर सकती है।
शंख और बाती
जब भी आरती करें उसमें घंटी और शंख का वादन अवश्य होना चाहिए। इससे जहां वातावरण शुद्ध होता है, आपके घर की सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा इन पवित्र ध्वनियों की गूंज से बाहर हो जाती है और आपकी प्रार्थना बिना किसी बाधा के भगवान तक पहुंचती है।
बातियों की संख्या
इसके अलावा दीपों या बातियों की संख्या में यह अवश्य रखें कि यह एक, पांच या सात के क्रम में हो। अगर आरती के लिए कपूर का प्रयोग कर रहे हों तो उसमें भी यही नियम लागू होगा।
आरती के पांच अंग
आरती के पांच अंग माने गए हैं पहला दीपक, दूसरा शुद्ध जल या गंगाजल युक्त शंख, तीसरा स्वच्छ वस्त्र, चौथा आम या पीपल के पवित्र पत्ते और पांचवा दंडवत प्रणाम करना। इसलिए आरती चाहे प्रातःकाल की हो या संध्याकालीन, या किसी विशेष पूजा की आरती, उसमें इन पांचों विधियों का क्रमानुसार पालन अवश्य किया जाना चाहिए।
शंख का जल
शंख में रखे जल को आरती में उपस्थित सभी लोगों पर छिड़काव करना चाहिए। इससे उन्हें पूजा का पूर फल प्राप्त होता है और जीवन की परेशानियां समाप्त होती हैं।
दीप घुमाने की संख्या
आरती करने में दीप घुमाने की संख्या और इसकी विधि भी महत्वपूर्ण है। आरती शुरु करते हुए सर्वप्रथम इसे भगवान के चरणों में चार बार, तत्पश्चात नाभि के पास दो बार घुमाते हुए मुखमंडल पर दीपक ले जाएं और वहां एक बार घुमाएं। इसके पश्चात समस्त अंगों पर कम से कम सात बार या इससे अधिक आरती घुमाएं।