Wednesday, August 30th, 2017
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इंडिया में ही जन्मे थे एटीएम के जनक, ऐसे आया था ATM बनाने का आइडिया




Auto & Technology

atm father

जबसे इंडिया में नोटबंदी हुई है तब से लोग एटीएम और नेटबैंकिंग का यूज करने लगे हैं और तभी से कैश डिपॉजिट मशीन का भी यूज बढ़ गया है। एटीएम तो हमें जगह-जगह लगे हुए दिख जाते हैं, उनसे पैसे भी निकल जाते हैं लेकिन क्या हम ये जानते हैं कि एटीएम बनाया किसने और क्यों था?

इस बात को काफी कम लोग ही जानते हैं कि एटीएम को किसने बनाया, बनाने वाला कहां का था, उसकी क्या जरूरत थी वगैरह-वगैरह। चलिए नहीं भी जानते हैं तो हम आपको बताएंगे क्योंक एटीएम बनाने वाले की लाइफ में इतने सारे इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स हैं जो आपको हैरान करने पर मजबूर कर देंगे।

इंडिया अपना परचम दुनियाभर में लहरा रहा है। दुनियाभर में इंडिया की टेक्नोलॉजी काम कर रही है तो एटीएम भला क्यों पीछे रहे। एटीएम को बनाने वाले यानि उसके अविष्कारक भी इंडिया में ही जन्मे थे। इनका नाम जॉन शेपर्ड बैरन था। इनका जन्म 23 जून को भारत के मेघालय में हुआ था।

इनके पिता विलफ्रिड बैरॉन उत्तराखंड में एक चीफ इंजीनियर थे उनकी मां डोरोथी एक ओलंपिक प्लेयर थी। जॉन अपनी पढ़ाई के लिए यूरोप चले गए जहां पर यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज से उन्होंने अपनी पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद वे वही बस गए और एक डायला रूई नामक कंपनी में जॉब की। इस कंपनी में वे मैनेजमेंट ट्रेनी की हैसियत से काम करने लगे थे लेकिन आगे चलकर वो इस कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर बने। इस कंपनी में नोट प्रिटिंग का काम हुआ करता था।

कैसे आया एटीएम का आइडिया
जॉन शेपर्ड जब कंपनी में काम करते थे तो उन्हें वेतन चेक के रूप में मिलता था। उस समय चेक क्लियर कराने के लिए बैंक में शनिवार का दिन ही होता था। एक बार जॉन शेपर्ड बैंक देर से पहुंचे तो उनका चेक क्लियर नहीं हो पाया। इस बात को लेकर जॉन शेपर्ड को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने सोचा क्यों न इस समस्या का हल निकाला जाए।

जॉन शेपर्ड ने सोचा कि जिस तरह कोलड्रिंक्स के लिए वेंडिंग मशीन है क्यों न पैसे निकालने के लिए भी मशीन हो जिसमें से चेक क्लियर हो सके। जॉन शेपर्ड ने इस मशीन पर काम करना शुरू किया। वे इस मशीन को बनाने में सफल हो गए और साल 1967 में 26 जून को आज ही के दिन पहला एटीएम लंदन के एनफील्ड टाउन में बार्कलेज बैंक द्वारा स्थापित किया गया।

6 अंकों का रखना चाहते थे पिन
एटीएम का पिन जो आप आज चार अंकों का यूज करते हैं उसको जॉन छः अंकों का रखना चाहते थे। उनका मानना था कि छः अंकों का पिन ज़्यादा सेफ रहेगा लेकिन उनकी वाइफ ने कहा कि ये किसी को याद रखना मुश्किल है। इसे चार अंकों का रखा जाए तो ये आसानी से याद रहेगा। इसके बाद जॉन ने इसे चार अंकों का कर दिया।

पेटेंट नहीं करवाया ATM
जॉन बैरन ने एटीएम तो बना दिया लेकिन उन्होंने कभी इसका पेटेंट नहीं करवाया। उनका मानना था कि अगर वो एटीएम का पेटेंट करवाएंगे तो उन्हें उस मशीन की कोडिंग पेटेंट करवाने वालों से साझा करना पड़ेगी। वे चाहते थे कि उनकी टेक्नोलॉजी सीक्रेट ही रहे।

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