“पहला सुख निरोगी काया”, यूँ ही नहीं कहते हैं; हमारा पहला साथी हमारा शरीर है. किसी भी काम को करने के लिए जितनी मन की ज़रुरत होती है उतनी ही शरीर की भी. यदि हमारा तन स्वस्थ नहीं है तो हम कभी खुश नहीं रह सकते.
बदलते समय के साथ साथ स्वस्थ रहने की परिभाषा भी बदल गयी है. आज से कुछ वर्ष पहले हृष्ट पुष्ट शरीर ही स्वस्थ देह के परिचायक थे पर आज के समय हर किसी पर पतला होने ही धुन सवार है. 10 वर्ष के बालक/बालिकाओं से लेकर 70 साल के बुज़ुर्ग तक हर व्यक्ति zero figure का दीवाना है चाहे उसके लिए हमारा शरीर साथ दे या न दे.
मैं एक दिन अपनी एक सहेली से मिली, उसकी उम्र 30 वर्ष की है. भगवान की कृपा से उसके 2 प्यारे बच्चे हैं- एक लड़का और एक लड़की. उस दिन मैं उसके घर गयी तो उसने मुझे डाइट फ़ूड सर्व किया. यही नहीं उसने अपने बच्चों को भी डाइट फ़ूड की आदत डाल रखी है. वे भी कच्ची सब्जियां एवं अंकुरित दाल खाते हैं. जब उसने मुझे यह बताया तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. मैंने जब उसे इस बारे में पूछा तो बोली, मैंने अभी से इनको सीमित खाने की आदत डाल दी है ताकि जब आगे जाकर डाइटिंग करें तो कोई परेशानी न हो. जब मैंने पूछा की डाइटिंग करनी ही क्यों है तो बोली आजकल एक दम पतले शरीर का ज़माना है, जीरो फिगर के लिए डाइटिंग तो करनी ही पड़ेगी.
एक दूसरे पहलू की बात करें तो हम देखते हैं कि बीते कुछ समय में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. कहीं किसी 10 साल के बच्चे ने आत्महत्या की तो कहीं सिविल सर्विस के किसी उच्च अधिकारी ने. एक बच्चे को ऐसी क्या तकलीफ हो सकती है जिसके सामने उसे मरना आसान लगे. एक ऐसा उच्च अधिकारी जो परीक्षा में प्रथम स्थान लेता है वह अपनी ज़िंदगी खत्म कर लेता है. कोई 1% नंबर कम आने पर आत्महत्या करता है तो कोई अपने साथी से झगड़ा होने पर. सुनकर ही दिल दहल जाता है. कभी हमने सोचा है ऐसा क्यों होता है? क्यों कोई अपनी ज़िंदगी ख़तम कर लेता है? सभी जानते हैं कि मरना किसी भी परेशानी का समाधान नहीं है. ये सब तभी होता है जब हमारा मन हमारी परेशानियों को संभाल नहीं पाए.
यदि हम कुल आंकड़े देखें तो लगभग 40 % लोग डिप्रेशन के शिकार हैं. क्या पहले परेशानियां नहीं होती थी या कभी किसी का झगड़ा नहीं होता था या कभी कोई फेल नहीं हुआ. पर ये बात पक्की है कि कोई आत्महत्या नहीं करता था. ये कमज़ोर मन का कारण है कमज़ोर खान-पान. डाइटिंग के चक्कर में हम यह भूल जाते हैं कि हर उम्र की शारीरिक जरूरतें होती हैं. जवान उम्र का शरीर पौष्टिक भोजन मांगता है ऐसे में दुबले दिखने की चाहत में भूखे रहना और डाइटिंग के नाम पर असंतुलित आहार लेना कई शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा करता है, डिप्रेशन जैसी मनोस्तिथि पैदा करता है. परिणामत: इस तरह के नतीजे सामने आते हैं. हम भोजन संतुलित और प्रसन्न मन से करेंगे तभी तो मन स्वस्थ और प्रसन्न रहेगा|
आज कल के बच्चे या तो वीडियो गेम्स खेलते हैं या कार्टून देखते हैं. अगर उनसे बाहर जा कर खेलने के लिए कह दो तो 10 मिनिट में थक कर वापिस घर आ जाते हैं. यही हाल युवा पीढ़ी का है. उनको अपने लैपटॉप और मोबाइल से फुर्सत ही नहीं है. अगर एक मंज़िल भी चढ़ना हो तो लिफ्ट इस्तेमाल करेंगे. ये सब कमज़ोर शरीर की निशानी है. इस कमज़ोर शरीर का कारण है असंतुलित भोजन पर्याप्त पोषण के अभाव में युवावस्था में ही बच्चे शारीरिक श्रम से कतराने लगते हैं नतीजन बहुत सी समस्याओं से जूझना पड़ता है
गलत तरीके से डाइटिंग करने से कई सारी बीमारियां होती है जैसे हड्डियों का कमज़ोर होना, थाइराइड, जोड़ो का दर्द, माइग्रेन और बहुत सारे त्वचा सम्बन्धी रोग और तो और हृदयघात का एक कारण डाइटिंग भी है. डाइटिंग से सबसे बड़ा रोग खून में होता है. सही भोजन न लेने के कारण खून में रक्षक कोशिकाओं की कमी हो जाती है और इसी वजह से हम दिन प्रतिदिन नए रोगों से घिर जाते हैं.
हमारे बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं “जैसा खाये अन्न, वैसा हो मन.” हमारा शरीर एक मशीन की तरह है, जिसे अच्छे से चलने के लिए पोषित खाने के आवश्यकता पड़ती है. खासकर बच्चों के लिए तो यह पोषण बहुत ही ज़रूरी है क्यों कि उनका शरीर विकसित हो रहा है. भोजन हमारे जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है. आप ही सोचिये की यदि किसी ईमारत की नींव ही कमज़ोर रह जाए तो वह कितने दिन टिक पाएगी.
पतले होने का जुनून लड़कियों में ज्यादा देखने को ज्यादा मिलता है. किसी को सुन्दर दिखना है तो किसी के पति की इच्छा है कि वो पतली हो. क्या पतला होना ही सुंदरता का पैमाना है? और इस जुनून को पूरा करने के लिए वो पूरा पूरा दिन बिना कुछ खाए रहती है. इस वजह से वे इतनी कमज़ोर हो जाती है कि किसी को बुखार हो जाता है तो किसी को रास्ते में चक्कर आ जाते हैं. आप खुद ही सोचिये कि अपने शरीर के साथ यह अन्याय कहाँ तक सही है.
मैं ये नहीं कहती कि अपने तन की तरफ ध्यान मत दो. मोटापा 1000 बीमारियों का एक कारण हैलेकिन मोटा होने और स्वस्थ होने में फर्क है आज कल के युवाओं में हर कोई फिट रहना चाहता है और एक हद तक ये अच्छा भी है. हम सभी को अपनी सेहत के लिए जागरूक होना चाहिए. पर यह जागरूकता जुनून नहीं बनना चाहिए. युवा वर्ग फिटनेस को दुबलेपन से जोड़ता है जो सही नहीं है.
सबसे पहले हमें ये जानना चाहिए कि हमारे मोटापे का कारण क्या है. यानि कि अपनी दैनिक दिनचर्या पर गौर कीजिये. ताज़ा खाना खाइये, फल एवं सब्जियों को अपने खाने में शामिल कीजिये. यदि आप का कुछ चटपटा खाने का मन है तो खुद घर पर बनाइये. यदि नहीं बनाना आता है तो ऑनलाइन देखिये और कोशिश कीजिये. इस से आप को २ फायदे होंगे; एक तो आप बाज़ार का खाने से बच जाएंगे और दूसरा आप खाना बनाने का हुनर सीख जाएंगे. ऑफिस में हर 1 घंटे में उठ कर थोड़ा घूमने की आदत डालिये. अपने काम खुद कीजिये जैसे यदि आप को पानी चहिये तो हुकुम मत चलाइए, खड़े होइए और खुद लीजिये. यकीन मानिये आप कुछ ही दिनों में खुद में फर्क देखेंगे. सुबह या शाम को पार्क जाइये. थोड़ी सैर कीजिये, योग कीजिये. दिन में एक बार ज़रूर घूमिए. आप जिम जाने की बजाय खुली हवा में सांस लीजिये. आप प्रकृति के जितना नज़दीक रहेंगे उतने ही ज्यादा स्वस्थ रहेंगे.
दोस्तों, डाइटिंग का मतलब कभी भी कम खाना नहीं होता है. डाइटिंग का मतलब होता है कि आप अच्छा खाएं, पौष्टिक खाएं, अपने खाने पर नियंत्रण करें. हमारा शरीर कुदरत की एक अनमोल भेंट है. हमें इसे संभाल कर रखना चाहिए. अंत में यही कहूँगी कि खुश रहिये और स्वस्थ रहिये और जिन्दगी का मज़ा लीजिए.
Charu Aggarwal