जब शिवजी ने शरभ रूप धर विष्णु के नरसिंह अवतार की नाभि को चीरा था तब विष्णु जी ने महादेव से अनुरोध किया कि नरसिंह के चर्म यानी चमड़ी को अपने वस्त्र के रुप में स्वीकार करके सम्मानित करें।
इसके बाद महान पशुपति शिव ने उस चर्म को अपने वस्त्र और आसन के रुप में धारण किया और भक्तजनों के हृदय में अपना मोहक स्वरुप प्रकाशित किया। इसके पहले तक वे अपने वास्तविक स्वरुप में यानी नग्न रहना पसंद करते थे। लेकिन उन्होंने श्रीहरि की विनती स्वीकार करके बाघंबर या सिंहचर्म को वस्त्र के रुप में स्वीकार किया।
दुनिया की सबसे रोचक खबरों के लिए यहां CLICK करें और हमारा पेज LIKE करें …